विद्युत धारा कक्षा 10

विद्युत धारा कक्षा 10 में आपको विद्युत धारा से संबंधित 31 तथ्य जिनमे विद्युत धारा क्या है, विद्युत धारा की परिभाषा, विद्युत धारा का सूत्र क्या है, विद्युत धारा को मापने का यंत्र क्या है के बारे में विस्तार से बतायेगे –

अगर आप एक बार विद्युत धारा Electric Current कक्षा 10 को ध्यान से पढ़ लेगे तो आप विद्युत धारा से संबंधित सभी प्रश्नो के उत्तर बड़े ही आसानी से दे देंगे। तो चलिए शुरू करते है –

विद्युत धारा कक्षा 10

विद्युत धारा कक्षा 10 :-

विद्युत धारा की परिभाषा

किसी चालक में विद्युत आवेश के प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते है। विधुत् धारा की दिशा धन आवेश की गति की ओर मानी जाती है। इसका S.I. मात्रक एम्पियर है। विद्युत धारा एक अदिश राशि है।

विद्युत धारा  कक्षा 10 विद्युत धारा से संबंधित 31 तथ्य –

1. एक एम्पियर विद्युत धारा

यदि किसी चालक तार में एक एम्पियर (1A) विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है तो इसका अर्थ है, की उस तार में प्रति सेकंड 6.25*10 ^18 इलेक्ट्रान एक सिरे से प्रविष्ट होते है तथा इतने ही इलेक्ट्रान दूसरे सिरे से बाहर निकल जाते है।

2. प्रतिरोध (Resistance)

किसी चालक में विद्युत धारा के प्रवाहित होने पर चाक के परमाणुओं तथा अन्य कारको द्वारा उत्पन्न किये गए व्यवधान को ही चालक का प्रतिरोध कहते है। इसका SI मात्रक ओम होता है।

3. ओम का नियम (Ohm’s law)

यदि चाक की भौतिक अवस्था जैसे – ताप आदि में कोई परिवर्तन न हो तो चालक के सिरों पर लगाया गया विभवांतर उनमे प्रवाहित धारा के अनुक्रमानुपाती होता है। यदि किसी चालक के दो बिंदुओं के बीच विभवंतर V वाल्ट हो तथा उसमे प्रवाहित धारा I एम्पियर हो,
तो ओम के नियमानुसार –
V = RI (जहा R एक नियतांक है, जिसे चालक का प्रतिरोध कहते है)

4. ओमीय प्रतिरोध (Ohmic Resistance)

जो चालक ओम के नियम का पालन करते है, उनके प्रतिरोध को ओमीय प्रतिरोध कहते है। जैसे – मैगनीज का तार।

5. अनओमीय प्रतिरोध (Non-ohmic Resistance)

जो चालक ओम के नियम का पालन नहीं करते है, उनके प्रतिरोध को अनओमीय प्रतिरोध कहते है, जैसे -डायोड बल्ब का प्रतिरोध, ट्रायोड बल्ब का प्रतिरोध।

6. चालकता (Conductance)

किसी चालक के प्रतिरोध के व्युत्क्रम को चालक की चालकता कहते है। इसे G से सूचित करते है (G = 1 / R) इसकी SI इकाई ओम^ -1  होता है, जिसे मूहो भी कहते है। इसकी SI इकाई सीमेन भी होता है।

7. विशिष्ट प्रतिरोध (Specific Resistance)

किसी चालक का प्रतिरोध उसकी लम्बाई के अनुक्रमानुपाती तथा उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है, अर्थात् यदि चालक की लम्बाई l और उसकी अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल A है, तो R = p l /A  जहा p एक नियतांक है जिसे चाक का विशिष्ट प्रतिरोध कहा जाता है। अतः ,एक ही पदार्थ के बने हुए मोटे तार का प्रतिरोध कम तथा पतले तार का प्रतिरोध अधिक होता है।

8. विशिष्ट चालकता (Conductivity)

किसी चाक के विशिष्ट प्रतिरोध के व्युत्क्रम को चालक का विशिष्ट चालकता कहते है। इसे o- से सूचित करते है (o- = 1/p) इसकी SI इकाई पर ओम पर मीटर होती है।

9. प्रतिरोधों का संयोजन (Combination of Resistance)

सामान्यतः प्रतिरोधों का संयोजन दो प्रकार से होता है –

  1. श्रेणी क्रम – श्रेणीक्रम में संयोजित प्रतिरोधों का समतुल्य प्रतिरोध समस्त प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है।
  2. समानान्तर क्रम – समानांतर क्रम में संयोजित प्रतिरोधों के समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम उनके प्रतिरोधों के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है।
विद्युत धारा कक्षा 10
electric-current

10 विद्युत शक्ति (Electric Power)

विद्युत परिपथ में ऊर्जा के श्रय होने की दर को विद्युत शक्ति कहते है। इसका SI मात्रक वाट होता है।

11. किलोवाट घंटा मात्रक अथवा यूनिट

1 किलो वाट घंटा मात्रक अथवा एक यूनिट विधुत ऊर्जा की वह मात्रा है, जो कि किसी परिपथ में एक घंटा में व्यय होती है, जबकि परिपथ में 1 किलोवाट की शक्ति हो। किलो वाट घंटा मात्रक = (वाल्ट * एम्पियर * घंटा) / 1000 = (वाट * घंटा) / 1000

12. अमीटर (Ammeter)

विद्युत धारा को एम्पियर में मापने के लिए आमीटर नामक यंत्र का प्रयोग किया जाता है इसे परिपथ में सदैव श्रेणी क्रम में लगाया जाता है। एक आदर्श आमीटर का प्रतिरोध शून्य होना चाहिए

13. वाल्ट मीटर (Voltameter)

वाल्ट मीटर का प्रयोग परिपथ के किन्ही दो बिंदुओं के बीच विभवांतर मापने में किया जाता है। इसे परिपथ में सदैव समानांतर क्रम में लगाया जाता है। एक आदर्श वाल्ट मीटर का प्रतिरोध अनंत होना चाहिए।

14. विद्युत फ्यूज (Electric Fuse)

विद्युत फ्यूज का प्रयोग परिपथ में लगे उपकरणों की सुरक्षा के लिए किया जाता है, यह टिन (63%) व् सीसा (37%) की मिश्रधातु का बना होता है। यह सदैव परिपथ के साथ श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है। इसका गलनांक कम होता है।

15. गैल्वेनोमीटर (Galvanometer)

विद्युत परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति बताने वाला एक यंत्र है। इसकी सहायता से 10^-6 एम्पियर तक की विधुत धारा को मापा जा सकता है।

16. शंट का उपयोग

शंट एक अत्यंत कम प्रतिरोध वाला तार होता है, जिसे गैल्वेनोमीटर के समांतर क्रम में लगाकर आमीटर बनाया जा सकता है। गैल्वेनोमीटर के श्रेणी क्रम में एक उच्च प्रतिरोध लगाकर वाल्ट मीटर बनाया जा सकता है।

17. ट्रांसफॉर्मर (Transformer)

विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करने वाला यह एक ऐसा यंत्र है, जो उच्च A.C. वोल्टेज को निम्न A.C. वोल्टेज में बदल देता है। यह केवल प्रत्यावर्ती धारा A.C.के लिए प्रयुक्त किया जाता है।

18. A.C. डायनेमो

यह यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है। यह विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।

19. विद्युत मोटर (Electric Motor)

यह एक ऐसा यंत्र है, जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदल देता है। यह विधुत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य नहीं करता है।

विद्युत मोटर
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20. माइक्रोफोन

यह ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है। माइक्रोफोन विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर आधारित होता है।   नोट :-

प्राथमिक स्टेशनों पर जो विद्युत धारा उत्त्पन्न होती है, वह प्रत्यावर्ती धारा होती है।तथा उसकी वाल्टता 22000 V या इससे अधिक हो सकती है। ग्रिड उपस्टेशन ट्रांसफॉर्मर की सहायता से वाल्ट ता बढ़ा देते है, जो 132000 V तक भी हो सकती है, ताकि विद्युत संचरण में विद्युत ऊर्जा का क्षय बहुत कम हो।

स्थिर वैद्युत का विद्युत धारा कक्षा 10 में महत्व –

पदार्थ को परस्पर रगड़ने से उस पर जो आवेश की मात्रा संचित रहती है, उसे स्थिर-विद्युत कहते है। स्थिर विद्युत कहते है। स्थिर विद्युत में आवेश स्थिर रहता है। बेंजामिन फ्रेंकलिन ने दो प्रकार के आवेशों को धनात्मक आवेश व् ऋणात्मक आवेश नाम दिया है। समान प्रकार के आवेश परस्पर प्रतिकर्षित करते है तथा विपरीत प्रकार के आवेश परस्पर आकर्षित करते है। वस्तुओ का आवेशन इलेक्ट्रॉनों के स्थानांतरण के फलस्वरूप होता है।

1. आवेश का पृष्ट घनत्व (Surface density of charge)

चालक के इकाई क्षेत्रफल पर स्थित आवेश की मात्रा को उस आवेश का पृष्ट घनत्व कहते है। चालक का पृष्ट घनत्व चालक के आकर एवं चालक के समीप स्थित अन्य चालक या विद्युत रोधी पदार्थो पर निर्भर करता है। पृष्ट घनत्व सबसे अधिक चालक के नुकीले भाग पर होता है, क्योंकि नुकीले भाग का क्षेत्रफल सबसे कम होता है।

2. चालक (Conductor)

जिन पदार्थो से होकर विधुत आवेश सरलता से प्रवाहित होता है, उन्हें चालक कहते है। जैसे -चाँदी, ताम्बा, एल्युमीनियम आदि। चाँदी सबसे अच्छा चालक है। दूसरा स्थान ताम्बा का है।

3. अचालक (Non-conductor)

जिन पदार्थो से होकर आवेश का परवाह नहीं होता है, उन्हें अचालक कहते है। जैसे – लकड़ी, रबर, कागज आदि।

4. कुलाम का नियम (Coulomb’s law)

दो स्थिर विद्युत आवेशों के बीच लगने वाला आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण बल दोनों आवेशों की मात्राओं के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती एवं उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है तथा यह बल दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश कार्य करता है।

5. विद्युत क्षेत्र (Electric field)

किसी आवेश या आवेशित वस्तु के चारों ओर का स्थान जहाँ तक उसके प्रभाव का अनुभव किया जा सके, विद्युत क्षेत्र कहलाता है।

6. विद्युत क्षेत्र की तीव्रता (Intensity of Electric field)

विद्युत क्षेत्र में किसी बिंदु पर स्थित एकांक धन आवेश पर क्रियाशील बल को विद्युत क्षेत्र को तीव्रता कहा जाता है।

7. खोखले चालक के विद्युत क्षेत्र

किसी भी खोखले चालक के अंदर विद्युत क्षेत्र शून्य होता है। यदि ऐसे चालक को आवेशित किया जय तो सम्पूर्ण आवेश उसके बाहरी पृष्ट पर ही रहता है। अतः खोखला गोला एक विद्युत परिरक्षक का कार्य करता है। यही कारण है कि यदि किसी कर पर तड़ित विद्युत गिर जाय तो कार के अंदर बैठे व्यक्ति पूर्ण सुरक्षित रहता है, तड़ित से प्राप्त विद्युत आवेश कार की बाहरी सतह पर ही रहता है।

8. विद्युत विभव (Electric Potential)

किसी धनात्मक आवेश को अनंत से विद्युत क्षेत्र के किसी बिंदु तक लेन में किये गये कार्य एवं आवेश के मान के अनुपात को उस बिंदु का विद्युत विभव कहा जाता है। विधुत विभव का SI मात्रक वाल्ट होता है। यह एक अदिश राशि है।

9. विभवांतर (Potential Difference)

एक कुलाम धनात्मक आवेश को विद्युत क्षेत्र में एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किये गए कार्य को उन बिन्दुओं के मध्य विभवांतर कहते है। इसका मात्रक भी वाल्ट है। यह एक अदिश राशि है।

10. विद्युत धारिता (Electric Capacity)

किसी चालक की धारिता चालक को दिए गये आवेश तथा उसके कारण चालक के विभव में होने वाले परिवर्तन के अनुपात को विद्युत धारिता कहते है। विद्युत धारिता का SI मात्रक फेराड होता है।

11. विद्युत सेल (Electric Cell)

विद्युत सेल मुख्यतः दो प्रकार के होते है –

  • प्राथमिक सेल :- प्राथमिक सेल में रासायनिक ऊर्जा को सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। एक बार प्रयोग कर लेने के बाद यह बेकार हो जाते है। वोल्टीय सेल, लेकलांशे सेल, डेनियल सेल, शुष्क सेल प्राथमिक सेल के उदाहरण है।
  • द्वितीय सेल :- द्वितीयक सेल में पहले विधुत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में फिर रासायनिक ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में परिवर्तन किया जाता है। आवेशन कर इसे बार-बार प्रयोग में लाया जा सकता है।
विद्युत सेल
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  1. वोल्टीय सेल का अविष्कार 1799 ईस्वी में प्रोफेसर एलीजाण्डो वोल्टा ने किया था। इसमें जस्ते की छड़ केथोड के रूप में एवं ताम्बे की छड़ एनोड के रूप में प्रयोग की जाती है। इन छड़ो को कांच के बर्तन में रखे सल्फ्यूरिक अम्ल में रखा जाता है।
  2. लेकलांशे सेल में एनोड के रूप में कार्बन की छड़ एवं कैथोड के रूप में जस्ते की छड़ का प्रयोग किया जाता है। इन छड़ो को कांच के बर्तन में रखे अमोनियम क्लोराइड में रखा जाता है।
  3. लेकलांशे सेल में एनोड के रूप में कार्बन की छड़ मेगनीज डाइऑक्साइड व कार्बन के मिश्रण के बीच रखी जाती है।
  4. लेकलांशे सेल का विद्युत-वाहक बल यानि विभव लगभग 1.5 वाल्ट होता है।
  5. लेक्लांशे का प्रयोग वहाँ किया जाता है जहाँ रुक-रुक कर थोड़े समय के लिए विद्युत धारा की आवश्यकता होती है जैसे विद्युत घंटी, टेलीफोन आदि।
  6. शुष्क सेल में जस्ते के बर्तन में मेगनीज डाइआक्साइड, अमोनियम क्लोराइड एवं कार्बन का मिश्रण के बीच में कार्बन की एक चढ़ रखी रहती है। इसमें कार्बन की चढ़ एनोड के रूप में एवं जस्ते की बर्तन कैथोड के रूप में कार्य करती है। इस सेल का विभव 1.5 V होता है।
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