न्यायपालिका क्या है

न्यायपालिका के प्रकार मे सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय फिर उच्च न्यायालय तथा सबसे नीचे जिला और अधीनस्थ न्यायालय है। न्यायपालिका क्या है, में हम न्यायपालिका की विशेषता, न्यायपालिका का कार्य, स्वतंत्र न्यायपालिका का महत्व के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की रचना, शक्तियाँ तथा स्थिति के बारे मे बताया गया है –

न्यायपालिका क्या है

न्यायपालिका क्या है :-

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है भारतीय न्याय प्रणाली में सबसे श्रेष्ठ न्यायालय है। रंजन गोगाई सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश है। सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश का वेतन 2 लाख 50 हजार रूपये प्रति माह के आलावा अन्य भत्ते भी सरकार की तरफ से दिए जाते है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। । तो चलिए शुरू करते है –

सर्वोच्च न्यायालय (उच्चतम न्यायालय) –

  • भारत की न्यायिक व्यवस्था इकहरी और एकीकृत है, जिसके सर्वोच्च शिखर पर भारत का उच्चतम न्यायालय है। उच्चतम न्यायालय दिल्ली में स्थित है।
  • उच्चतम न्यायालय की स्थापना, गठन, अधिकारिता, शक्तियों के विनियमन से संबंधित विधि-निर्माण की शक्ति भारतीय संसद को प्राप्त है।
  • उच्चतम न्यायालय का गठन संबंधी प्रावधान (अनुच्छेद 124) में दिया गया है।
  • उच्चतम न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 30 अन्य न्यायाधीश होते है।
नोट :- उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश सहित 8 न्यायाधीशों की व्यवस्था संविधान में मूलतः की गयी थी। बाद में काम के बढ़ते दबाव को देखते हुए 1956 ईस्वी में उच्चतम न्यायालय अधिनियम में संशोधन कर न्यायाधीशों की संख्या 11 कर दी गई। तदुपरांत 1960 ईस्वी में यह संख्या पुनः बढ़ाकर 14, 1978 ईस्वी में 18 तथा 1986 ईस्वी में 26 हो गयी। केंद्र सर्कार ने 21 फरवरी, 2008 ईस्वी को उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधिश के अतिरिक्त न्यायाधीशों की संख्या 25 से बढ़ाकर 30 करने का फैसला किया।
  • इन न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है।
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बनने के लिए न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित नहीं की गयी है। एक बार नियुक्ति होने के बाद इनके अवकाश ग्रहण करने की आयु सीमा 65 वर्ष है।
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश साबित कदाचार तथा असमर्थता के आधार पर संसद के प्रत्येक सदन में विशेष बहुमत से पारित समावेदन के आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा हटाये जा सकते है।
  • उच्चतम न्यायालय के के मुख्य न्यायाधीश को 2 लाख 80 हजार रूपये प्रति माह तथा अन्य न्यायाधीश को 2 लाख 50 हजार रूपये प्रतिमाह वेतन मिलता है।

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के लिए योग्यता :-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह किसी उच्च न्यायालय अथवा दो या दो से अधिक न्यायालयों में लगातार कम से कम 5 वर्षो तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो। या किसी उच्च न्यायालय या न्यायालयों में लगातार 10 वर्षो तक अधिवक्ता रह चुका हो। या राष्ट्रपति की दृष्टि में कानून का उच्च कोटि का ज्ञाता हो।
  3. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अवकाश प्राप्त करने के बाद भारत में किसी भी न्यायालय या किसी भी अधिकारी के सामने वकालत नहीं कर सकते।
  4. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को पद एवं गोपनीयता की शपथ राष्ट्रपति दिलाता है।
  5. मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति लेकर, दिल्ली के अतिरिक्त अन्य किसी स्थान पर सर्वोच्च न्यायालय की बैठकें बुला सकता है।  अब तक हैदराबाद और श्रीनगर में इस प्रकार की बैठकें आयोजित की जा चुकी है।

उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार

1. प्राम्भिक क्षेत्राधिकार

प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय उसी विवाद को निर्णय के लिए स्वीकार करेगा, जिसमें किसी तथ्य या विधि का प्रश्न शामिल है।

  1. भारत संघ तथा एक या एक से अधिक राज्यों के मध्य उतपन्न विवादों में
  2. भारत संघ तथा कोई एक राज्य या अनेक राज्यों और एक या एक से अधिक राज्यों के बीच ऐसे विवाद में
  3. दो या दो से अधिक राज्यों के बीच ऐसे विवाद में, जिसमें उनके वैधानिक अधिकारों का प्रश्न निहित है।

2. अपीलीय क्षेत्राधिकार

देश का सबसे बड़ा अपीलीय न्यायालय उच्चतम न्यायालय है। इसे भारत के सभी उच्चतम न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है। इसके अंतर्गत तीन प्रकार के प्रकरण आते है –

  1. सांविधानिक
  2. दीवानी और
  3. फ़ौजदारी

3. परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार

राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह सार्वजनिक महत्व के विवादों पर उच्चतम न्यायालय का परामर्श मांग सकता है। (अनुच्छेद 143) न्यायालय के परामर्श को स्वीकार या अस्वीकार करना राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है।

4. पुनर्विचार संबंधी क्षेत्राधिकार

संविधान के अनुच्छेद 137 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह स्वयं द्वारा दिए गए आदेश या निर्णय पर पुनर्विचार कर सके तथा यदि उचित समझे तो उसमे आवश्यक परिवर्तन कर सकता है।

5. अभिलेख न्यायालय

संविधान का अनुच्छेद 129 उच्चतम न्यायालय को अभिलेख न्यायालय का स्थान प्राप्त है। इसका आशय यह है कि इस न्यायालय के निर्णय सब जगह साक्षी के रूप में स्वीकार किये जायेंगे और इसकी प्रमाणिकता के विषय में प्रश्न नहीं किया जायेगा।

6. मौलिक अधिकारों का रक्षक

भारत का उच्चतम न्यायालय नागरिकों मौलिक अधिकारों का रक्षक है। अनुच्छेद 32 सर्वोच्च न्यायालय को विशेष रूप से उत्तरदायी ठहराता है कि वह मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए आवश्यक कार्यवाही करे। न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा लेख और उत्प्रेक्षण के लेख जारी कर सकता है।

नोट :- उच्चतम न्यायालय में संविधान के निर्वचन से संबंधित मामले की सुनवाई करने के लिए न्यायाधीशों की संख्या कम-से-कम पांच होनी चाहिए [अनुच्छेद 145(3)]

उच्च न्यायालय –

  • संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय होगा (अनुच्छेद 214), लेकिन संसद विधि द्वारा दो या दो से अधिक राज्यों और किसी संघ राज्य क्षेत्र के लिए एक ही उच्च न्यायालय स्थापित कर सकती है (अनुच्छेद 231) वर्तमान में  हरियाणा, असम, नागालैंड, मिजोरम तथा अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, दादर और नागर हवेली और दमन तथा द्वीप और पश्चिम बंगाल, अंडमान निकोबार द्वीप समूह आदि के लिए एक ही  न्यायालय है।
  • वर्तमान में भारत में 24 उच्च न्यायालय है।
  • केंद्रशासित प्रदेशों से केवल दिल्ली में उच्च न्यायालय है।
  • प्रत्येक उच्च न्यायालय में का गठन एक मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों से मिलाकर किया जाता है। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है। भिन्न-भिन्न उच्च न्यायालयों  में न्यायाधीशों की संख्या अलग-अलग होती है।
                                लोक अदालत
लोक अदालत क़ानूनी विवादों के मैत्रीपूर्ण समझौते के लिए वैधानिक मंच है। विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 (संशोधन 2002) द्वारा लोक उपयोगी सेवाओं के विवादों के संबंध में मुकदमेबाजी पूर्व सुलह और निर्धारण के लिए स्थायी लोक अदालतों की स्थापना के लिए प्रावधान करता है। ऐसे फौजदारी विवादों को छोड़कर जन्मे समझौता नहीं  सकता, दीवानी, फौजदारी, राजस्व अदालतों में लंबित सभी कानूनी विवाद मैत्रीपूर्ण समझौते के लिए लोक अदालत में लाये जा सकते है। क़ानूनी विवादों को लोक अदालते मुकदमा दायर होने से पूर्व भी अपने यह स्वीकार कर सकती है। लोक अदालत के निर्णय अन्य किसी दीवानी न्यायालय के समान ही दोनों पक्षों पर लागू होते है। यह निर्णय अंतिम होते है। लोक अदालतों द्वारा दिए गए निर्णयों के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती। देश के लगभग सभी जिलों में स्थायी तथा सतत लोक अदालते स्थापित की गई है। लोक अदालत 5 लाख रूपये तक के दाबे पर विचार कर सकती है।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए योग्यताएँ

  1. भारत का नागरिक हो।
  2. कम-से-कम दस वर्ष तक न्यायिक पद धारण कर चूका हो अथवा किसी उच्च न्यायालय में या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में लगातार 10 वर्षो तक अधिवक्ता रहा हो।
  3. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उस राज्य, जिसमे उच्च न्यायालय स्थित है, का राज्य पाल उसके पद की शपथ दिलाता है।
  4. उच्च न्यायालय के न्यायधिशो का अवकाश ग्रहण करने की अधिकतम उम्र सीमा 62 वर्ष (प्रस्तावित 65) है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अपने पद से, राष्ट्रपति को सम्बोधित कर, कभी भी त्याग पत्र दे सकता है।
  5. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उसी प्रकार अपदस्थ किया जा सकता है जिस प्रकार उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश पद मुक्त किया जाता है।
  6. जिस व्यक्ति ने उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश के रूप में कार्य किया है, वः उस न्यायालय में वकालत नहीं कर सकता। किन्तु वह अन्य किसी दूसरे उच्च न्यायालय में अथवा उच्चतम न्यायालय में वकालत कर सकता है।
  7. राष्ट्रपति आवश्यकतानुसार किसी भी उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि कर सकता है अथवा अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति कर सकता है।
  8. राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के किसी अवकाशप्राप्त न्यायाधीश को भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का अनुरोध कर सकता है।
  9. उच्च न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय होता है। उसके निर्णय आधिकारिक माने जाते है तथा उनके आधार पर न्यायालय अपने निर्णय देते है (अनुच्छेद 215)।
  10. भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श कर राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश का स्थानांतरण किसी दूसरे उच्च न्यायालय में कर सकता है।
1. राष्ट्रपति
5 लाख
2. उपराष्ट्रपति
4 लाख
3. सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
2 लाख 80 हजार
4. सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश
2 लाख 50 हजार
5. उच्च न्यायालय के मुख्य
न्यायाधीश 2 लाख 50 हजार
6. उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश
2 लाख 25 हजार 

उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार

1. प्रारंभिक क्षेत्राधिकार

प्रत्येक उच्च न्यायालय को नौकाधिकरण, इच्छा-पत्र, तलाक, विवाह, (कम्पनी-कानून) न्यायालय की अवमानना तथा कुछ राजस्व संबंधी प्रकरणो नागरिको के मौलिक अधिकरों के क्रियान्वयन (अनुच्छेद 226) के लिए आवश्यक निर्देश विशेषकर बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, निषेध, उत्प्रेषण तथा अधिकार पृच्छा के लेख जारी  करने के अधिकार प्राप्त है।

2. अपीलीय क्षेत्राधिकार

  1. फौजदारी मामलो में अगर सत्र न्यायाधीश ने मृत्युदंड दिया हो, तो उच्च न्यायालय में उसके विरुद्ध अपील हो सकती है।
  2. दीवानी मामलो में उच्च न्यायलय में उन सब मामलों की अपील हो सकती है, हो पांच लाख रूपये या उससे अधिक सम्पत्ति से संबंध हो।
  3. उच्च न्यायालय पेटेंट और डिजाइन, उत्तराधिकार, भूमि-प्राप्ति, दिवालियापन और संरक्षकता आदि मामलों में भी अपील सुनता है।

3. उच्च न्यायालय में मुकदमों का हस्तांतरण

यदि किसी उच्च न्यायालय को ऐसा लगे कि जो अभियोग अधीनस्थ न्यायालय में विचाराधीन है, वह विधि के किसी सारगर्भित प्रश्न से संबंद्ध है। तो वह उसे अपने यह हस्तांतरित कर, या तो उसका निपटारा स्वयं कर देता है या विधि से संबंद्ध प्रश्न को निपटाकर अधीनस्थ न्यायालय को निर्णय के लिए वापस भेज देता है।

4. प्रशासकीय अधिकार

उच्च न्यायालयों को अपने अधीनस्थ न्यायालयों में नियुक्त, पदावनति, पदोन्नति तथा छुट्टियों के संबंध में नियम बनाने का अधिकार है।

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