प्रकाश का परावर्तन class 10 में प्रकाश से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य जैसे – प्रकाश का अपवर्तन, प्रकाश का परावर्तन, इंद्रधनुष आकाश में केसे बनता है, उत्तल और अवतल दर्पण के उपयोग के बारे मे विस्तार से जानने को मिलेगा –
प्रकाश का परावर्तन class 10
प्रकाश (light) क्या है ?
एक प्रकार की ऊर्जा है, जिसका ज्ञान हमें आँखों द्वारा प्राप्त होता है।
प्रकाश के प्रति व्यवहार के आधार पर वस्तुओं को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है –
- प्रदीप्त वस्तुएँ (Luminous bodies) : वे वस्तुएँ जो स्वयं के प्रकाश में प्रकाशित होती है; जैसे -सूर्य, विद्युत बल्ब आदि।
- अप्रदिप्त वस्तुएँ (Nonluminous bodies) : वे वस्तुएँ जिनका अपना स्वयं का प्रकाश नहीं होता लेकिन उन पर प्रकाश डालने पर वे दिखाई देने लगती है; जैसे – मेज, कुर्सी आदि।
- पारदर्शक वस्तुएँ (Transparent bodies) : वे वस्तुएँ जिनमे से होकर प्रकाश की किरणें निकल जाती है। जैसे – काँच, जल आदि।
- अर्द्धपारदर्शक वस्तुएँ (Translucent bodies) : कुछ वस्तुएँ ऐसी होती है जिन पर प्रकाश की किरणें पड़ने से उनका कुछ भाग तो अवशोषित हो जाता है, तथा कुछ भाग बाहर निकल जाता है, ऐसी वस्तुओं को अर्द्धपारदर्शक वस्तुएँ कहते है ; जैसे – तेल लगा हुआ कागज।
- अपारदर्शक वस्तुएँ (Opaque bodies) : ये वे वस्तुएँ है जिनमे होकर प्रकाश की किरणें बाहर नहीं निकल पाती; जैसे – धातु।
प्रकाश से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य
- प्रकाश विधुतचुम्कीय तरंगों के रूप में संचारित होती है। इसका तरंगदैध्र्य 3900 अंग्स्टरोंग से 7800 अंग्स्टरोंग के बीच होता है।
- विद्युत चुंबकीय तरंग अनुप्रस्थ होती है। अतः प्रकाश भी अनुप्रस्थ तरंग है।
- प्रकाश के कुछ गुण ऐसे है जिनकी व्याख्या तरंग-सिद्धांत नहीं कर पाता है; जैसे – प्रकाश विद्युत प्रभाव तथा क्राम्टन सिद्धांत।
- प्रकाश विद्युत प्रभाव एवं क्राम्टन सिद्धांत की व्याख्या आइंस्टीन द्वारा प्रतिपादित प्रकाश के फोटॉन सिद्धांत द्वारा की जाती है। वास्तव में यह दोनों प्रभाव प्रकाश की कण प्रकृति को प्रकट करते है।
- प्रकाश का फोटॉन सिद्धांत – इसके अनुसार प्रकाश ऊर्जा के छोटे छोटे बंडलों या पैकिटों के रूप में चलता है, जिन्हें फोटॉन कहते है।
- आज प्रकाश को कुछ घटनाओं में तरंग और कुछ में कण माना जाता है। इसी को प्रकाश की दोहरी प्रकृति कहते है।
- प्रकाश के वेग की गणना सबसे पहले रोमर ने की थी।
- वायु व् निर्वात में प्रकाश की चाल सबसे अधिक 3 * 10^8 मीटर पर सेकंड होती है।
- प्रकाश की चाल माध्यम के अपवर्तनांक पर निर्भर करता है। जिस माध्यम का अपवर्तनांक जितना अधिक होता है, उसमे प्रकाश की चाल उतनी ही काम होती है।
- प्रकाश को सूर्य से पृथ्वी तक आने में औसतन 8 मिनट 16.6 सेकंड का समय लगता है।
- चन्द्रमा से परावर्तित प्रकाश को पृथ्वी तक आने में 1.28 सेकंड का समय लगता है।
प्रकाश का विवर्तन (Diffraction of Light) :
प्रकाश को अवरोध के किनारो पर थोड़ा मुड़कर उसकी छाया में प्रवेश करने की घटना को विवर्तन कहते है।
प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of Light) :
जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरता है, जिसमें धूल-कण तथा अन्य पदार्थ के अत्यंत सूक्ष्म कण होते है, तो इनके द्वारा प्रकाश सभी दिशाओं में प्रसारित हो जाता है, इस घटना को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते है। बैंगनी रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे अधिक और लाल रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम होता है।
आकाश का रंग नीला प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है।
प्रकाश का परावर्तन (Reflection of Light)
प्रकाश के चिकने पृष्ठ से टकराकर वापस लौटने की घटना को प्रकाश का परावर्तन कहते है। परावर्तन के दो नियम है –
- आपतित किरण, आपतन बिंदु पर अभिलम्ब व् परावर्तित किरण एक ही ताल में होते है।
- आपतन कोण परावर्तन कोण के बराबर होता है।
प्रकाश का अपवर्तन
जब प्रकाश की किरणे एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे पारदर्शी माध्यम में प्रवेश करती है तो दोनों माद्यमो को अलग करने वाले तल पर अभिलंबवत आपाती होने पर बिना मुड़े सीधे निकल जाती है, परन्तु तिरछी आपाती होने पर वे अपनी मूल दिशा से विचलित हो जाती है। इस घटना को प्रकाश का अपवर्तन कहते है। जब प्रकाश की कोई किरण विरल माध्यम (rarer medium) (जैसे हवा) से सघन माध्यम (densor medium) प्रवेश करती है, तो वह दोनों माध्यमों के पृष्ठ पर खींचे गए अभिलम्ब की ओर झुक जाती है तथा जब किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती है, तो वह अभिलम्ब से दूर हट जाती है।
अपवर्तन के नियम :-
- आपतित किरण, अभिलम्ब तथा अपवर्तित किरण तीनों एक ही समतल स्थित होते है।
- किन्हीं दो माध्यमों के लिए आपतन कोण के ज्या तथा अपवर्तन कोण की ज्या का अनुपात एक नियतांक होता है।
- नियतांक को पहले माध्यम के सापेक्ष दूसरे माध्यम का अवर्तनांक कहते है। इस नियम को स्नेल का नियम भी कहते है।
- किसी माध्यम का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न रंग के प्रकाश के लिए भिन्न-भिन्न होता है। तरंगदैध्र्य बढ़ने के साथ अवर्तनांक का मान काम हो जाता है। अतः लाल रंग का अपवर्तनांक सबसे कम तथा बैंगनी रंग का अपवर्तनांक सबसे अधिक होता है।
- ताप बढ़ने पर भी सामान्यतः अपवर्तनांक घटता है। लेकिन यह परिवर्तन बहुत ही कम होता है।
- किसी माध्यम का निरपेक्ष अपवर्तनांक निर्वात में प्रकाश की चाल तथा उस माध्यम से प्रकाश की चाल के अनुपात के बराबर होता है। अर्थात् निरपेक्ष अपवर्तनांक = निर्वात में प्रकाश की चाल / माध्यम में प्रकाश की चाल
प्रकाश के अपवर्तन के कारण घटने वाली घटनाएँ :
- द्रव में अंशतः डूबी हुई सीधी छड़ डेढ़ी दिखाई पड़ती है।
- तारे टिमटिमाते हुए दिखाई पड़ते है।
- सूर्योदय के पहले एवं सूर्यास्त के बाद भी सूर्य दिखाई देता है।
- पानी से भरे किसी बर्तन की तली में पड़ा हुआ सिक्का ऊपर उठा हुआ दिखाई देता है।
- जल के अंदर पड़ी हुई मछली वास्तविक गहराई से कुछ ऊपर उठी हुई दिखाई पड़ती है।
प्रकाश का पूर्ण आंतरिक परावर्तन (Total Internal Reflection of Light)
- क्रांतिक कोण (Critical Angle) : क्रांतिक कोण सघन माध्यम से बना वह आपतन कोण होता है, जिसके लिए विरल माध्यम में अपवर्तन कोण का मान 90 डिग्री होता है।
- आपतन कोण का मान क्रांतिक कोण से थोड़ा-सा अधिक कर दे तो प्रकाश विरल माध्यम से बिल्कुल ही नहीं जाता, बल्कि सम्पूर्ण प्रकाश परावर्तित होकर सघन माध्यम में ही लौट जाता है। इस घटना को प्रकाश का पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहते है। इसमें प्रकाश का अपवर्तन बिल्कुल नहीं होता, सम्पूर्ण आपतित प्रकाश परावर्तित हो जाता है। किसी पृष्ठ के जिस भाग से पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है, वह चमकने लगता है।
प्रकाश के पूर्ण आंतरिक परावर्तन के लिए निम्न दो शर्तों का अनिवार्य है –
- प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जा रही हो
- आपतन कोण क्रांतिक कोण से बड़ा हो।
पूर्ण आंतरिक परावर्तन के उदाहरण :
- हीरा का चमकना
- रेगिस्तान में मरीचिका का बनना
- जल में पड़ी परखनली का चमकना
- कॉंच में आई दरार का चमकना
प्रकाशीय तंतु (Optical Fibres)
प्रकाश सरल रेखा में गमन करता है, लेकिन पूर्ण आंतरिक परावर्तन का उपयोग करके प्रकाश को एक वक्रीय मार्ग में चलाया जा सकता है। प्रकाशीय तंतु, पूर्ण आंतरिक परावर्तन के सिद्धांत पर आधारित एक ऐसी युक्ति है, जिसके द्वारा प्रकाश सिग्नल को, इसकी तीव्रता में बिना हानि के एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरित किया जा सकता है; चाहे मार्ग कितना भी टेढ़ा-मेढ़ा हो।
प्रकाशित तंतु का उपयोग :
- प्रकाश सिग्नलों के दूर संचार में
- विद्युत सिग्नल को प्रकाश सिग्नल में बदलकर प्रेषित करने में तथा अभिग्रहण करने में
- मनुष्य के शरीर के आंतरिक भागों का परीक्षण करने में
- शरीर के अंदर लेसर किरणों को भेजने में
प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण (Dispersion of Light)
जब सूर्य का प्रकाश प्रिज्म से होकर गुजरता है, तो वह अपवर्तन के पश्चात प्रिज्म के आधार की ओर झुकने के साथ-साथ विभिन्न रंगों के प्रकाश में बँट जाता है। इस प्रकार से प्राप्त रंगों के समूह को वर्णक्रम (spectrum) कहते है तथा श्वेत प्रकाश को अपने अवयवी रंगों में विभक्त होने की क्रिया को वर्ण-विक्षेपण कहते है।
- सूर्य के प्रकाश से प्राप्त रंगों में बैंगनी रंग का विक्षेपण सबसे अधिक एवं लाल रंग का विक्षेपण सबसे कम होता है।
- विभिन्न रंगो के आधार से ऊपर की ओर कर्म इस प्रकार है – बैंगनी (Violet), जामुनी (Indigo), नीला (Blue), हरा (Green), पीला (Yellow), नारंगी (Orange) तथा लाल (Red)
- न्यूटन ने 1666 ईस्वी में पाया कि भिन्न-भिन्न रंग भिन्न-भिन्न कोणों से विक्षेपित होते यही। वर्ण-विक्षेपण किसी पारदर्शी पदार्थ में भिन्न-भिन्न रंगों के प्रकाश के भिन्न-भिन्न वेग होने के कारण होता है। अतः किसी पदार्थ का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न रंगो के प्रकाश के लिए भिन्न-भिन्न होता है।
- पारदर्शी पदार्थ में जैसे-जैसे प्रकाश के रंगों का अपवर्तनांक बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे उस पदार्थ में उसकी चाल कम होती जाती है; जैसे – काँच में बैंगनी रंग के प्रकाश का वेग सबसे कम तथा अपवर्तनांक सबसे अधिक होता है तथा लाल रंग का वेग सबसे अधिक एवं अपवर्तनांक सबसे कम होता है।
इंद्रधनुष (Rainbow)
परावर्तन, पूर्ण आंतरिक परावर्तन तथा अपवर्तन द्वारा वर्ण-विक्षेपण का सबसे अच्छा उदाहरण इंद्रधनुष है। इंद्रधनुष दो प्रकार के होते है –
- प्राथमिक इंद्रधनुष (Primary rainbow)
- द्वितीय इंद्रधनुष (Secondary rainbow)
प्राथमिक इंद्रधनुष :
जब वर्षा की बूंदों पर आपतित होने वाली सूर्य की किरणों का दो बार अपवर्तन व एक बार परावर्तन होता है, तो प्राथमिक इंद्रधनुष का निर्माण होता है। प्राथमिक इंद्रधनुष में लाल रंग बाहर की ओर और बैंगनी रंग अंदर की ओर होता है। इसमें अंदर वाली बैंगनी किरण आँख पर 42 डिग्री 8 रेडियन का कोण बनाती है।
द्वितीय इंद्रधनुष :
जब वर्षा की बूंदों पर आपतित होने वाली सूर्य की किरणों का दो बार अपवर्तन व दो बार परावर्तन होता है, तो द्वितीय इंद्रधनुष का निर्माण होता है। द्वितीय इंद्रधनुष में बैंगनी रंग बाहर की ओर और लाल रंग अंदर की ओर होता है। इसमें अंदर वाली लाल किरण आँख पर 50 डिग्री 8 रेडियन का कोण तथा बैंगनी किरण आँख पर 54 डिग्री 52 रेडियन कोण बनाती है।
- द्वितीय इंद्रधनुष प्राथमिक इंद्रधनुष की अपेक्षा कुछ धुँधला दिखलाई पड़ता है।
समतल दर्पण (Plane Mirror) से परावर्तन
- समतल दर्पण किसी वस्तु का प्रतिबिंब दर्पण के पीछे उतनी दुरी पर बनता है, जितनी दुरी पर वस्तु दर्पण के सामने रखी होती है। यह प्रतिबिंब काल्पनिक, वस्तु के बराबर एवं पाशर्व उल्टा (Lateral Inverse) होता है।
- यदि कोई व्यक्ति v चाल से दर्पण की ओर चलता है, तो उसे दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब 2v चाल से अपनी ओर आता हुआ प्रतीत होगा।
- यदि आपतित किरण को नियत रखते हुई दर्पण को थीटा डिग्री से घुमा दिया जाए तो परावर्तित किरण 2 थीटा से घूम जाती है।
- समतल दर्पण में वस्तु का पूर्ण प्रतिबिम्ब देखने के लिए दर्पण की लम्बाई वस्तु की लम्बाई की कम-से-कम आधी होनी चाहिए।
प्रतिबिम्बों की संख्या की गणना
यदि दो समतल दर्पण थीटा कोण पर झुके हो तो उनके बीच रखी वस्तु के प्रतिबिम्बों की संख्या की गणना निम्न प्रकार से की जाती है –
- यदि (360 / थीटा) एक सम संख्या आये तो प्रतिबिम्बों की सभी स्थितियों के लिए n = (360 / थीटा) – 1 होगी। जैसे 90 डिग्री पर झुके दो समतल दर्पणों के बीच (360 / 90) – 1 = 3 प्रतिबिम्ब बनेंगे।
- यदि (360 / थीटा) एक विषम संख्या आये तो प्रतिबिम्बों की सभी स्थितियों के लिए n = (360 / थीटा) होगी। जैसे 90 डिग्री पर झुके दो समतल दर्पणों के बीच (360 / 90) = 4 प्रतिबिम्ब बनेंगे।
- यदि (360 / थीटा) एक विषम संख्या आये और वस्तु दोनों दर्पणों के बीच के कोण के समद्विभाजक पर रखी हो तो प्रतिबिम्बों की संख्या n = (360 / थीटा) – 1 होगी। जैसे 40 डिग्री कोण पर झुके दो समतल दर्पणों के बीच 20 डिग्री पर कोई वस्तु रखी है तो प्रतिबिम्ब की संख्या (360 / 40) – 1 = 8 होगी।
- यदि (360 / थीटा) एक भिन्न संख्या हो तो प्रतिबिम्बों की संख्या उसके पूर्णाक के बराबर होगी।
गोलीय दर्पण से परावर्तन
गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते है –
- अवतल दर्पण
- उत्तल दर्पण
अवतल दर्पण का उपयोग :
- बड़ी फोकस दूरी वाला
- अवतल दर्पण दाढ़ी बंनाने में काम आता है।
- आँख, कान एवं नाक के डॉक्टर के द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला दर्पण
- गाड़ी के हैडलाइट एवं सर्च लाइट में
- सोलर कुकर में
उत्तल दर्पण से बने प्रतिबिम्ब : उत्तल दर्पण में प्रत्येक दशा में प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे, उसके ध्रुव और फोकस के बिच वस्तु से छोटा, सीधा एवं आभासी बनता है।
उत्तल दर्पण के उपयोग :
- इसका उपयोग गाड़ी में चालक की सीट के पास पीछे के दृश्य को देखने में किया जाता है।
- सोडियम परावर्तक लैंप में।