ध्वनि के प्रकार – अवश्रव्य तरंगें, श्रव्य तरंगें और पराश्रव्य तरंगें

ध्वनि के प्रकार मे, तरंग दैध्र्य का अर्थ, यांत्रिक तरंग, अयांत्रिक तरंग, अनु दैध्र्य और ध्वनि तरंग (Sound Wave) के बारे में पढेगे ध्वनि कितने प्रकार की होती है? विद्युत चुंबकीय तरंगों के प्रयोग क्या है? इन सभी प्रश्नो के उत्तर बताए गए है –

तरंगों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा गया है –

  1. यांत्रिक तरंग (Mechanical Wave)
  2. अयांत्रिक तरंग (Non-mechanical Wave)

ध्वनि के प्रकार - अवश्रव्य तरंगें, श्रव्य तरंगें और पराश्रव्य तरंगें

यांत्रिक तरंग : 

वे तरंगे जो किसी पदार्थिक माध्यम (ठोस, द्रव अथवा गैस) में संचरित होती है, यांत्रिक तरंग कहलाती है। यांत्रिक तरंगों को मुख्यतः दो  भागों में बाँटा गया है –

  1. अनुदैध्र्य तरंग (Longitudinal Wave)
  2. अनुप्रस्थ तरंग (Transverse Wave)

अनुदैध्र्य तरंग : जब तरंग गति की दिशा माध्यम कणों के कम्पन करने की दिशा के अनुदिश (या समांतर) होती है, तो ऐसी तरंग को अनुदैध्र्य तरंग कहते है। ध्वनि अनुदैध्र्य तरंग का उदाहरण है।अनुप्रस्थ तरंग : जब तरंग गति की दिशा माध्यम के कणों के कम्पन करने की दिशा के लंबवत् होती है, तो इस प्रकार की तरंगों को अनुप्रस्थ तरंग कहते है।

अयांत्रिक तरंग या विद्युत चुंबकीय तरंग (Electromagnetic Wave) : 

वैसी तरंगें जिसके संचरण के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है, अर्थात् तरंगें निर्वात में भी संचरित हो सकती है, उन्हें विद्युत चुंबकीय या अयांत्रिक तरंग कहते है – सभी विद्युत चुंबकीय तरंगें एक ही चाल से चलती है, जो प्रकाश की चाल के बराबर होती है।

विद्युत चुंबकीय तरंगों के गुण –

  1. यह उदासीन होती है।
  2. यह अनुप्रस्थ होती है।
  3. यह प्रकाश के वेग से गमन करती है।
  4. इसके पास ऊर्जा एवं संवेग होती है।
  5. इसकी अवधारणा मैक्सवेल के द्वारा प्रतिपादित किया गया है।
  6. सभी विधुत चुंबकीय तरंगें फोटॉन की बनी होती है।
  7. विद्युत चुंबकीय तरंगों का तरंगदैध्र्य परिसर 10^-14 मीटर से 10^4 मीटर तक होता है।

केथोड किरणें, कैनाल किरणें, अल्फ़ा किरणें, बीटा-किरणें, ध्वनि तरंगें, पराश्रव्य तरंगें ये सभी तरंगें विद्युत चुंबकीय नहीं है।

प्रमुख विद्युत चुम्कीय तरंगें –

  1. गामा किरणें : खोज बैकुरल द्वारा, तरंग दैध्र्य 10^ -14 से 10^ -10 मीटर तक, आवृत्ति परिसर 10^20 से 10^18 तक, नाभकीय अभिक्रिया तथा कृत्रिम रेडियोधर्मिता में इसका उपयोग किया जाता है।
  2. एक्स किरणें : खोज रांजन द्वारा, तरंग दैध्र्य 10^ -10 से 10^ -8 मीटर तक, आवृत्ति परिसर 10^18 से 10^16 तक, चिकित्सा एवं औद्योगिक क्षेत्र में इसका उपयोग किया जाता है।
  3. पराबैंगनी किरणें : खोज रिटर द्वारा, तरंग दैध्र्य 10^ -8 से 10^ -7 मीटर तक, आवृत्ति परिसर 10^16 से 10^14 तक, (सिकाई करने, प्रकाशविधुत प्रभाव को उत्पन्न करने, बैक्टीरिया को नष्ट) करने में इसका उपयोग किया जाता है।
  4. दृश्य विकिरण : खोज न्यूटन द्वारा, तरंग दैध्र्य (wave-length) 3.9 * 10^-7 से 7.8 * 10^-7 मीटर तक, आवृत्ति परिसर 10^14 से 10^12 तक, इससे हमें वस्तुएँ दिखलाई देती है।
  5. अवरक्त विकिरण : खोज हर्शेल द्वारा, तरंग दैध्र्य (wave-length) 7.8 * 10^-7 से 10^-3 मीटर तक, आवृत्ति परिसर 10^12 से 10^10 तक, इसका उपयोग कुहरे में फोटोग्राफी एवं रोगियों की सेकाई करने में किया जाता है।
  6. लघु रेडियो तरंगें : खोज हेनरिक हटर्ज द्वारा, तरंग दैध्र्य (wave-length) 10^-3 से 1 मीटर तक, आवृत्ति परिसर 10^10 से 10^8 तक, इसका उपयोग (रेडियो, टेलीविजन एवं टेलीफोन) में किया जाता है।
  7. दीर्घ रेडियो तरंगें : खोज मार्कोनी द्वारा, तरंग दैध्र्य (wave-length) 1 मीटर से 10^4 मीटर तक, आवृत्ति परिसर 10^6 से 10^4 तक, इसका उपयोग रेडियो और टेलीविजन में किया जाता है।
Sound Wave  ध्वनि और तरंग
Sound Wave

तरंगों से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण शब्दावली –

  • किसी कारक द्वारा उत्पन्न विक्षोभ के आगे बढ़ने की प्रक्रिया को तरंग-गति कहते है।
  • आवर्त गति में कम्पन करते हुए किसी कण की किसी शान पर स्थिति तथा गति की दिशा को जिस राशि द्वारा निरूपित किया जाता है उसे उस क्षण पर के कम्पन की कला (Phase of Vibration) कहते है।
  • दोलन करने वाली वस्तु अपनी साम्य स्थिति की किसी भी ओर जितनी अधिक से अधिक दूरी तक जाती है, उस दूरी को दोलन का आयाम (Amplitude) कहते है।
  • तरंग गति में समान कला में कम्पन करने वाले दो क्रमागत कणों के बीच की दुरी को तरंगदैध्र्य (Wave-Length) कहते है। इसे ग्रीक अक्षर (लैम्डा) से व्यक्त किया जाता है। अनुप्रस्थ तरंगों में दो पास-पास के शृंगो अथवा गर्तो के बीच की दूरी तथा अनुदैध्र्य तरंगों में क्रमागत दो संपीड़नो या विरलनों के बीच की दूरी तरंगदैध्र्य कहलाती है।

ध्वनि के प्रकार :-

  • अवश्रव्य तरंगें (Infrasonic Wave) : 20 Hz से नीचे की आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों को अवश्रव्य तरंग कहते है। इसे हमारा कान सुन नहीं सकता है। इस प्रकार की तरंगों को  बहुत बड़े आकर के स्त्रोतों से उत्पन्न किया जा सकता है।
  • श्रव्य तरंगें (Audible Wave) : 20 Hz से 20000 Hz के बीच की आवृत्ति वाली तरंगों को श्रव्य तरंग कहते है। इन तरंगों को हमारा कान सुन सकता है।
  • पराश्रव्य तरंगें (Ultrasonic Wave) : 20000 Hz से ऊपर की आवृत्ति वाली तरंगों को पराश्रव्य तरंग कहते है। मनुष्य के कान इसे नहीं सुन सकते है। परन्तु कुछ जानवर जैसे – कुत्ता, बिल्ली, चमगादड़ आदि, इसे सुन सकते है। इन तरंगों की आवृत्ति बहुत ऊँची होने के कारण इसमें बहुत अधिक ऊर्जा होती है। साथ ही इनका तरंगदैध्र्य छोटी होने के कारण इन्हे एक पतले किरण पुंज के रूप में बहुत दूर तक भेजा जा सकता है।

पराश्रव्य तरंगों के उपयोग –

  1. संकेत भेजने में ,
  2. समुद्र की गहराई का पता लगाने में,
  3. कीमती कपड़ो, वायुयान तथा घड़ियों के पुर्जो को साफ करने में
  4. कल-कारखानों की चिमनियों से कालिख हटाने में
  5. दूध के अंतर् के हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने में
  6. गठिया रोग के उपचार एवं मस्तिष्क के ट्यूमर का पता लगाने में।

ध्वनि की चाल (Speed of Sound) : 

  • विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल भिन्न-भिन्न होती है। किसी माध्यम में ध्वनि की चाल मुख्यतः माध्यम की प्रत्यास्थता तथा घनत्व पर निर्भर करती है।
  • ध्वनि की चाल सबसे अधिक ठोस में, उसके बाद द्रव में और उसके बाद गैस में होती है।
  • वायु में ध्वनि की चाल 332 मीटर/ सेकंड, जल में ध्वनि की चाल 1483 मीटर/ सेकंड और लोहे में ध्वनि की चाल 5130 मीटर/ सेकंड होती है।
  • जब ध्वनि एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है, तो ध्वनि की चाल एवं तरंगदैध्र्य बदल जाती है, जबकि आवृत्ति नहीं बदलती है।

ध्वनि की तीव्रता (Intensity) :

माध्यम के किसी बिंदु पर ध्वनि की तीव्रता, उस बिंदु पर एकांक क्षेत्रफल से प्रति सेकंड ताल के लंबवत गुजरने वाली ऊर्जा के बराबर होती है। ध्वनि की तीव्रता व्यक्त करने का मात्रक बेल है। ध्वनि की निरपेक्ष तीव्रता को वाट/ मीटर स्क्वायर में व्यक्त किया जाता है। बेल एक बड़ा मात्रक है, अतः व्यवहार में इससे छोटा मात्रक डेसीबल प्रयुक्त होता है जो बेल का दसवां भाग है।

ध्वनि के लक्षण (Characteristics of Sound Wave) : 

ध्वनि के मुख्यतः तीन लक्षण होते है –

  1. प्रबलता (Loudness) : प्रबलता ध्वनि का अभिलक्षण है जिसके कारण कोई ध्वनि तेज या मंद सुनाई देती है। ध्वनि की प्रबलता स्तर व्यक्त करने का मात्रक फोन है। ध्वनि स्त्रोत से दूर किसी बिंदु पर ध्वनि की तीव्रता समान। दूसरी ओर, प्रबलता उस बिंदु पर अलग-अलग व्यक्तियों के लिए अलग-अलग होती है, क्योंकि प्रबलता व्यक्ति की कान की सुग्राहिता पर निर्भर करता है।
  2. तारवता (Pitch) : तारत्व ध्वनि का वह लक्षण है, जिससे ध्वनि को मोटी या पतली कहा जाता है। तारत्व आवृत्ति पर निर्भर करता है। ध्वनि की आवृत्ति अधिक होने पर तारत्व अधिक होता है, एवं ध्वनि पतली (shrill) होती है। वहीं आवृत्ति कम होने पर तारत्व कम होता है एवं ध्वनि मोटी (grave) होती है।
  3. गुणता (Quality) : ध्वनि का वः लक्षण जिसके कारण हमे समान प्रबलता तथा समान तारत्व की ध्वनियों में अंतर प्रतीत होता है, गुणता कहलाता है। ध्वनि की गुणता संनादी स्वरों की संख्या, क्रम तथा आपेक्षित तीव्रता पर निर्भर करती है।

ध्वनि (Sound Wave) से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण शब्दावली

  • कान पर ध्वनि का प्रभाव 1/ 10 सेकंड तक रहता है।
  • जब ध्वनि तरंगें दूर स्थित किसी दृढ़ टावर या पहाड़ से टकराकर परावर्तित होती है, तो इस परावर्तित ध्वनि को प्रतिध्वनि (Echo) कहते है। प्रतिध्वनि सुनने के लिए श्रोता और परावर्तक सतह के बीच न्यूनतम 16.6 मीटर दुरी होनी चाहिए।
  • ध्वनि के अपवर्तन के कारण दिन की अपेक्षा रात में अधिक दूरी तक सुनाई पड़ती है।
  • जब किसी वस्तु के कम्पनों की स्वाभाविक आवृत्ति किसी चाक-बल के कम्पनों की आवृत्ति के बराबर होती है, तो वह वस्तु बहुत अधिक आयाम से कम्पन करने लगती है। इस घटना को अनुनाद (Resonance) कहते है।
  • जब समान आवृत्ति या आयाम की दो ध्वनि-तरंग एक साथ किसी बिंदु पर पहुँचती है, तो उस बिंदु पर ध्वनि-ऊर्जा का पुनः वितरण हो जाता है। इस घटना को ध्वनि का व्यतिकरण (Interference of Sound) कहते है।
  • ध्वनि  तरंग दैध्र्य 1 मीटर की कोटि का होता है। अतः जब इसी कोटि का कोई अवरोध ध्वनि के मार्ग में आता है, तो ध्वनि अवरोध के किनारे से मुड़कर आगे बढ़ जाती है। इस घटना को ध्वनि का विवर्तन (Diffraction of Sound) कहते है।
  • जब किसी ध्वनि स्त्रोत एवं श्रोता के बीच आपेक्षित गति होती है, तो श्रोता को ध्वनि की आवृत्ति उसकी वास्तविक आवृत्ति से अलग सुनाई पड़ती है, इसे ही डॉप्लर प्रभाव कहते है।

ध्वनि की चाल पर प्रभाव

  1. ध्वनि की चाल पर दाब का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अर्थात् दाब घटाने या बढ़ाने पर ध्वनि की चाल अपरिवर्तित रहती है।
  2. माध्यम का ताप बढ़ाने पर उसमें ध्वनि की चाल बढ़ जाती है। वायु में प्रति 1 डिग्री C ताप बढ़ाने पर ध्वनि की चाल 0.61 मीटर/ सेकंड बढ़ जाती है।
  3. नमीयुक्त वायु का घनत्व, शुष्क वायु के घनत्व से कम होता है; अतः शुष्क वायु की अपेक्षा नमी-युक्त वायु में ध्वनि की चाल अधिक होती है।
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