मानव पाचन तंत्र – Human digestive system

मानव पाचन तन्त्र की प्रक्रिया मनुष्य के मुख से शुरू होती है पाचन तंत्र के प्रमुख अंग और उससे संबन्धित प्रत्येक प्रश्न और डाउट को आप Human digestive system in hindi से क्लियर कर सकते हो –

Human digestive system in hindi

Human digestive system in hindi – मानव पाचन तन्त्र :-

भोजन के पाचन की सम्पूर्ण प्रक्रिया पांच अवस्थाओ से गुजरता है –

  1. अन्तग्रहण (Ingestion)
  2. पाचन (Digestion)
  3. अवशोषण (Absorption)
  4. स्वागीकरण (Assimilation)
  5. मल परित्याग (Defacation)

अंतग्रहण (Ingestion)

मानव में पाचन तन्त्र कैसे होता है?

भोजन को मुख में लेना अंतग्रहण कहलाता है

पाचन (Digestion)

मनुष्य में भोजन का पाचन मुख से प्रारम्भ हो जाता है और यह छोटी आंत तक जारी रहता है मुख में स्थित लार ग्रन्थियों से निकलने वाला एंजाइम टायलिन भोजन में उपस्थित मंड (Starch) को माल्टोज शर्करा में अपघटित कर देता है, फिर माल्टेज नामक एंजाइम माल्टोज शर्करा को ग्लूकोज में परिवर्तित कर देता है लाइसोजाइम नामक एंजाइम भोजन में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देता है इसके अतिरिक्त लार में उपस्थित शेष पदार्थ बफर कार्य करते है इसके बाद भोजन अमाशय में पहुचता है

अमाशय (Stomach) में पाचन

अमाशय में भोजन लगभग चार घंटे तक रहता है

भोजन के आमाशय में पहुचने पर पाइलोरिक ग्रन्थियों से जठर रस (Gastric Juice) निकलता है यह हल्के पीले रंग का अम्लीय द्रव्य होता है

आमाशय के आक्सिंटिक कोशिकाओ से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल निकलता है, जो भोजन के साथ आए हुये जीवाणुओं को नष्ट कर देता है तथा एंजाइम की क्रिया को तीव्र कर देता है हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भोजन के माध्यम को अम्लीय बना देता है, जिससे लार की टाईलिन की क्रिया समाप्त हो जाती है आमाशय से निकलने वाले जठर रस में एंजाइम होते है – पेप्सिन एवम रेनिन

पेप्सिन प्रोटीन को खंडित कर सरल पदार्थो (पेप्टोंस) में परिवर्तित कर देता है और रेनिन दूध की घुली हुई प्रोटीन केसिनोजेन (Caseinogen) को ठोस प्रोटीन केल्शियम पैराकेसिनेट (Casein) के रूप में बदल देता है

पक्वाशय (Duodenum) में पाचन :

भोजन को पक्वाशय में पहुचते ही सर्वप्रथम इसमें यकृत (liver) से निकलने वाला पितरस (bileduct) आकर मिलता है पित्त रस क्षारीय होता है और यह भोजन को अम्लीय से क्षारीय बना देता है

यहाँ अग्न्याशय से अग्न्याशय रस आकर भोजन में मिलता है, इसमें तीन प्रकार के एंजाइम होते है –

  1. ट्रिप्सिन (Trypsin) : यह प्रोटीन एवम पेप्टोन को पालीपेप्टाइड्स तथा अमीनो अम्ल में परिवर्तित करता है
  2. एमाइलेज (Amylase) : यह मांड (starch) को घुलनशील शर्करा (sugar) में परिवर्तित करता है
  3. लाइपेज (Lipase) : यह इमल्सीफाईड वसाओ को ग्लिसरीन तथा फेटी एसिड्स में परिवर्तित करता है

छोटी आंत (Small Intestine) में पाचन

यहाँ भोजन के पाचन की क्रिया पूर्ण होती है एवम् पचे हुए भोजन का अवशोषण होता है छोटी आंत की दीवारों से आन्त्रिक रस निकलता है इसमें निम्न एंजाइम होते है –

  1. इरेप्सिन (Erepsin) : शेष प्रोटीन एवम् पेप्टोंन को अमीनों अम्ल में परिवर्तित करता है
  2. माल्टेज (Maltase) : यह माल्टोज को ग्लूकोज में परिवर्तित करता है
  3. सुक्रेज (Sucrase) : सुक्रोज को ग्लूकोज एवम फ्रुक्टोज में परिवर्तित करता है
  4. लेक्टेज (Lactase) : यह लेक्टोज को ग्लूकोज एवम् गेलेक्टोज में परिवर्तित करता है
  5. लाइपेज (Lipase) : यह इमल्सीफाईड वसाओ को ग्लिसरीन तथा फेटी एसिड्स में परिवर्तित करता है

आन्त्रिक रस क्षारीय होता है स्वस्थ मनुष्य में प्रतिदिन लगभग 2 लीटर आन्त्रिक रस स्त्रावित होता है

अवशोषण (Absorption)

पचे हुए भोजन का रुधिर में पहुचना अवशोषण कहलाता है पचे हुए भोजन का अवशोषण छोटी आंत की रचना उद्धर्घ के द्वारा होती है

स्वागीकरण (Assimilation)

अवशोषित भोजन का शरीर के उपयोग में लाया जाना स्वागीकरण कहलाता है

मल-परित्याग (Deforcation)

अपच भोजन बड़ी आंत में पहुचता है, जहा जीवाणु इसे मल में बदल देते है; जिसे गुदा (anus) द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है

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पाचन कार्य में भाग लेने वाले प्रमुख अंग

यकृत (liver) :

  1. यह मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रन्थि है इसका वजन लगभग 1.5 – 2 kg होता है
  2. यकृत द्वारा ही पित्त स्त्रावित होता है यह पित्त आंत में उपस्थित एंजाइम की क्रिया को तीव्र कर देता है
  3. यकृत प्रोटीन के उपापचय में सक्रिय रूप से भाग लेता है और प्रोटीन विघटन के फलस्वरूप उत्पन्न विषेले अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित कर देता है
  4. यकृत प्रोटीन की अधिकतम मात्रा को कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित कर देता है
  5. कार्बोहाइड्रेट उपापचय के अंतर्गत यकृत रक्त के ग्लूकोज (Glycogen) वाले भाग को ग्लाइकोजेन में परिवर्तित कर देता है और संचित पोषक तत्वों के रूप में यकृत कोशिका (Hepatic Cell) में संचित कर लेता है ग्लूकोज की आवश्यकता होने पर यकृत संचित ग्लाइकोजेन को खंडित कर ग्लूकोज में परिवर्तित कर देता है इस प्रकार यह रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियमित बनाये रखता है
  6. भोजन में वसा की कमी होने पर यकृत कार्बोहाइड्रेट के कुछ भाग को वसा में परिवर्तित कर देता है
  7. फाइब्रिनोजेन (Fibrinogen) नामक प्रोटीन का उत्पादन यकृत से ही होता है, जो रक्त के थक्का बनने में मदद करता है
  8. हिपेरिन (Heparin) नामक प्रोटीन का उत्पादन यकृत के द्वारा ही होता है जो शरीर के अंदर रक्त को जमने से रोकता है
  9. मृत RBC को नष्ट यकृत के द्वारा ही किया जाता है
  10. यकृत थोड़ी मात्रा में लोहा (Iron), ताम्बा (Copper) और विटामिन को संचित करके रखता है
  11. शरीर के ताप को बनाए रखने में मदद करता है
  12. भोजन में जहर (Poison) देकर मारे गये व्यक्ति की मृत्यु के कारणों की जाँच में यकृत एक महत्वपूर्ण सुराग होता है

पिताशय (Gall-bladder) :

  1. यह नाशपाती के आकार की एक थेली होती है, जिसमें यकृत से निकलने वाला पित्त जमा रहता है
  2. पिताशय से पित्त पक्वाशय में पित्त-नलिका के माध्यम से आता है
  3. पित्त का पक्वाशय में गिरना प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex action) द्वारा होता है
  4. पित्त (Bile) पीले-हरे रंग का क्षारीय द्रव्य होता है जिसका pH मान 7.7 होता है
  5. पित्त में जल की मात्रा 85% एवम पित्त वर्णक (Bile pigment) की मात्रा 12% होती है

पित्त (Bile) का मुख्य कार्य

  1. यह भोजन के माध्यम को क्षारीय कर देता है, जिससे अग्न्याशयी रस क्रिया कर सके
  2. यह भोजन में आए हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है
  3. यह वसाओ का इमल्सीकरण (Emulsification of fat) करता है
  4. यह आंत की क्रमाकुंचन गतियों को बढ़ाता है, जिससे भोजन के पाचक रस भली-भांति मिल जाते है
  5. यह विटामिन K एवम वसाओ में घुले अन्य विटामिनों के अवशोषण में सहायक होता है

पित्तवाहिनी में अवरोध हो जाने पर यकृत कोशिकाए रुधिर से विलिरुबिन लेना बंद कर देती है फलस्वरूप विलिरुबिन सम्पूर्ण शरीर में फेल जाता है इसे ही पीलिया कहते है

अग्न्याशय (Pancreas) :

यह मानव शरीर की दूसरी सबसे बड़ी ग्रन्थि है यह एक साथ अंत स्त्रावी (नलिकायुक्त-ENdocrine) और बहि स्त्रावी (नलिकायुक्त-Exocrine) दोनों प्रकार की ग्रन्थि है

इससे अग्न्याश्यी रस निकलता है जिसमें 9.8% जल तथा शेष भाग में लवण एवम एंजाइम होते है यह क्षारीय द्रव्य होता है, जिसका pH मान 7.5 – 8.3 होता है इसमें तीन प्रकार के मुख्य भोज्य-पदार्थ (यथा कार्बोहाइड्रेट, वसा एवम प्रोटीन) को पचाने के लिए एंजाइम होते है, इसलिए इसे पूर्ण पाचक रस कहा जाता है एंजाइम मूलतः प्रोटीन होते है

लेंगरहेंस की द्विपिका (Islets of Langerhans) :

  • यह अग्नाशय का ही एक भाग है
  • इसकी खोज लेंगरहेंस नामक चिकित्साशास्त्री ने की थी
  • इसके बीटा-कोशिका से इन्सुलिन (insulin), एल्फा-कोशिका से ग्लूकान (Glucagon) एवम गामा-कोशिका से सोमेटोस्टेटिन (Somatostatin) नामक हार्मोन निकलता है

इन्सुलिन (Insulin) :

  • यह अग्न्याशय के एक भाग लेंगरहेंस की द्विपिका के बीटा-कोशिका द्वारा स्त्रावित होता है
  • इसकी खोज वेंटीग एवम वेस्ट ने सन 1921 ई में की थी
  • यह ग्लूकोज से ग्लाइकोजेन बनने की क्रिया को नियंत्रित करता है
  • इन्सुलिन के अल्प स्त्रवण से मधुमेह (डाईबीटिज) नामक रोग हो जाता है
  • रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा बढना मधुमेह कहलाता है
  • इन्सुलिन के अतिस्त्रवण से हाइपोग्लाइसीमिया नामक रोग हो जाता है, जिससे जनन-क्षमता तथा दृष्टि-ज्ञान कम होने लगाता है

ग्लूकान (Glucagon) –

यह ग्लाइकोजेन को पुन ग्लूकोज में परिवर्तित कर देता है

सोमेटोस्टेटिन (Somatostation) –

यह पालीपेप्टाइड (Polypeptide) हार्मोन होता है, जो भोजन के स्वांगीकरण की अवधि को बढ़ाता है

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