मानव हृदय और उसके कार्य

हृदय के कितने भाग होते हैं और हृदय (Heart) की बाहरी संरचना का चित्र सहित मानव हृदय की क्रियाविधि या हृदय कैसे कार्य करता है, मानव हृदय और उसके कार्य में विस्तार से अध्ययन किया गया है-

मानव हृदय और उसके कार्य

परिसंचरण तन्त्र (Circulatory system) मतलब ह्र्दय

  1. रक्त परिसंचरण की खोज सन 1628 ई विलियम हार्वे ने की थी
  2. इसके अंतर्गत निम्न चार भाग है : ह्र्दय (Heart), धमनिया (Arteries), शिराए (Veins) और रुधिर (Blood)
  3. ह्र्दय (Heart): यह ह्र्दयावरण (Pericardium) नामक थेली में सुरक्षित रहता है इसका भार लगभग 300 ग्राम होता है यह शरीर का सबसे व्यस्त अंग है
  4. मनुष्य का ह्र्दय चार कोष्ठों (chamber) का बना होता है अगले भाग में एक दाया आलिंद (Right auricle) एवम बाया आलिंद (Left auricle) तथा ह्र्दय के पिछले भाग में एक दाया निलय (Right ventricle) तथा एक बाया निलय (Left ventricle) होता है
  5. दाये आलिंद (right auricle) एवम दाये निलय (right ventricle) के बीच त्रिवलनी कपाट (tricuspid valve) होता है
  6. बाये आलिंद (left auricle) एवम बाये निलय (left ventricle) के बीच द्विवलनी कपाट (Bisvuspid valve) होता है
  7. शरीर से Heart की ओर रक्त ले जाने वाली रक्तवाहिनी को शिरा कहते है
  8. शिरा में अशुद्ध रक्त अर्थात कार्बन डाईआक्साइड युक्त रक्त होता है इसका अपवाद है पल्मोनरी शिरा (Pulmonary vein)
  9. पल्मोनरी शिरा फेफड़ा से बाये आलिंद में रक्त को पहुचाता है इसमें शुद्ध रक्त होता है
  10. Heart से शरीर की और रक्त ले जाने वाली रक्तवाहिनी को धमनी (artery) कहते है
  11. धमनी (artery) में अशुद्ध रक्त अर्थात् आक्सीजन युक्त रक्त होता है इसका अपवाद है पल्मोनरी धमनी (Pulmonary artery)
  12. पल्मोनरी धमनी दाहिने निलय से फेफड़ा में रक्त पहुचाता है इसमें अशुद्ध रक्त होता है
  13. Heart के दाहिने भाग में अशुद्ध रक्त यानि कार्बन डाईआक्साइड युक्त रक्त व् बाये भाग में शुद्ध रक्त यानि आक्सीजनयुक्त रक्त रहता है
  14. Heart की मासपेशियों को रक्त पहुचाने वाली वाहिनी को कोरोनरी धमनी (Coronary artery) कहते है इसी में किसी प्रकार की रुकावट होने पर ह्रदयाघात (Heart attack) होता है
  15. ह्र्दय में रुधिर का मार्ग ⇒ बाया आलिंद ⇒ बाया निलय ⇒ देहिक महाधमनी ⇒ विभिन्न धमनिया ⇒ छोटी धमनिया ⇒ धमनी कोशिकाए ⇒ अंग ⇒ अग्र एवम पश्च महाशिरा ⇒ दाहिना आलिंद ⇒ दाहिने निलय ⇒ पल्मोनरी धमनी ⇒ फेफड़ा ⇒ पल्मोनरी शिरा ⇒ बाया आलिदं (आक्सीजन युक्त रुधिर)
  16. ह्र्दय के संकुचन (Systole) एवम शिथिलन (Diastole) को सम्मिलित रूप से ह्र्दय की धड़कन (Heart beat) कहते है सामान्य अवस्था में मनुष्य का ह्र्दय एक मिनट में 72 बार धड़कता है और भ्रूण अवस्था में 150 बार धडकता है तथा एक धड़कन में लगभग 70 मिली रक्त पम्प करता है
  17. साइनो-आरिकुलर नोड (SAN) दाहिने आलिंद की दीवार में स्थित तंत्रिका कोशिकाओ का समूह है, जिससे ह्र्दय धडकन की तरग प्रारम्भ होती है
  18. सामान्य मनुष्य का रक्तदाब 120/80 mmhg होता है (सिस्टोलिक – 120 डायस्टोलिक – 80)
  19. रक्तदाब मापने वाले यंत्र का नाम स्फिगमोमेनोमीटर (Sphygmomanometer) है
  20. थायराक्सिन एवम एड्रीनेलिन स्वतंत्र रूप से ह्र्दय की धडकन को नियंत्रित करने वाले हार्मोन है
  21. रुधिर में उपस्थित CO2 रुधिर के pH को कम करके ह्र्दय की गति को बढ़ाता है अर्थात् अम्लीयता ह्र्दय की गति को बढ़ाती है एवम क्षारीयता ह्र्दय की गति को कम करती है

हृदय की बाहरी संरचना का चित्र –

ह्र्दय एक पेशीय अंग है जो हमारी मुट्ठी के आकार का होता है क्योकि रुधिर को आक्सीजन व् कार्बन डाईआक्साइड दोनों का ही वहन करना होता है अत आक्सीजन प्रचुर रुधिर को कार्बन डाईआक्साइड युक्त रुधिर से मिलने को रोकने के लिए ह्र्दय कई कोष्ठों में बंटा होता है

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मानव हृदय की क्रियाविधि / हृदय कैसे कार्य करता है –

कार्बन डाईआक्साइड प्रचुर रुधिर को कार्बन डाईआक्साइड छोड़ने के लिए फुफ्फुस में जाना होता है तथा फुफ्फुस से वापस आक्सिजनित रुधिर को ह्र्दय में लाना होता है यह आक्सीजन प्रचुर रुधिर तब शरीर के शेष हिस्सों में पम्प किया जाता है

हृदय दो भागो में बंटा होता है – बाई ओर स्थित कोष्ठ और दाई ओर स्थित कोष्ठ

1. ह्र्दय में बाई ओर स्थित कोष्ठ का कार्य

आक्सीजन प्रचुर रुधिर फुफ्फुस से ह्र्दय में बाई ओर स्थित कोष्ठ – बाया अलिंद, में आता है इस रुधिर को एकत्रित करते समय बाया अलिंद शिथिल रहता है जब अगला कोष्ठ, बाया निलय, फेलता है तब यह संकुचित होता है जिससे रुधिर इसमें स्थानातरित होता है अपनी बारी पर जब पेशीय बाया निलय संकुचित होता है, तब रुधिर शरीर में पम्पित हो जाता है

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ह्र्दय का चित्र

2. ह्र्दय में दाई ओर स्थित कोष्ठ का कार्य

& उपर वाला दाया कोष्ठ, दाया अलिंद जब फेलता है तो शरीर से विआक्सीजनित रुधिर इसमें आ जाता है जेसे ही दाया अलिंद संकुचित होता है, नीचे वाला संगत कोष्ठ, दाया निलय फेल जाता है यह रुधिर को दाये निलय में स्थानातरित कर देता है जो रुधिर को आक्सिजनीकरण हेतु अपनी बारी पर फुफ्फुस में पम्प कर देता है

पक्षी और स्तनधारी सरीखे जन्तुओ में परिसंचरण

पक्षी और स्तनधारी सरीखे जन्तुओ को जिन्हें उच्च उर्जा की आवश्यकता है, यह बहुत लाभदायक है क्योकि इन्हें अपने शरीर का तापक्रम बनाए रखने के लिए निरंतर उर्जा की आवश्कता होती है

उन जन्तुओ में जिन्हें इस कार्य के लिए उर्जा का उपयोग नही करना होता, शरीर का तापक्रम पर्यावरण के तापक्रम पर निर्भर होता है

  1. जल स्थल चर या बहुत से सरीसृप जेसे जन्तुओ में तीन कोष्ठीय ह्र्दय होता है और ये आक्सिजनित तथा विआक्सीजनित रुधिर धारा को कुछ सीमा तक मिलना भी सहन कर लेते है

2. दूसरी ओर मछली के ह्र्दय में केवल दो कोष्ठ होते है यहा से रुधिर क्लोम में भेजा जाता है जहा यह आक्सीजनित होता है और सीधा शरीर में भेज दिया जाता है इस तरह मछलियों के शरीर में एक चक्र में केवल एक बार ही रुधिर ह्र्दय में जाता है

3. तीसरी ओर अन्य कशेरुकी में प्रत्येक चक्र में यह दो बार ह्र्दय में जाता है इसे दोहरा परिसंचरण कहते है

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