संविधान के भाग-6 में राज्य शासन के लिए प्रावधान किया गया है। राज्य की कार्यपालिका का प्रमुख राज्यपाल (Governor) होता है, वह प्रत्यक्ष रूप से अथवा अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से इसका उपयोग करता है। भारतीय राज्यों के वर्तमान राज्यपालो में से हरियाणा के राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य 22 अगस्त, 2018 से कार्यरत है। Governor and state legislature /राज्यपाल और राज्य विधान मंडल में राज्यपाल के कार्य और शक्तियाँ बताते हुए मुख्यमंत्री, राज्य की विधान परिषद् और विधानसभा का भी वर्णन किया है तो चलिए सुरु करते है।
राज्यपाल पद पर नियुक्त किये जाने वाले व्यक्ति में निम्न योग्यताएँ होना अनिवार्य है –
- वह भारत का नागरिक हो
- वह 35 वर्ष की उम्र पूरा कर चुका हो
- किसी प्रकार के लाभ के पद पर नहीं हो।
- वह राज्य विधानसभा का सदस्य चुने जाने योग्य हो।
राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा पांच वर्षो की अवधि के लिए की जाती है ; परन्तु यह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करता है [अनुच्छेद – 156(1)] या वह पदत्याग सकता है [अनुच्छेद – 156(2)] । राज्यपाल का वेतन तीन लाख 50 हजार रूपये मासिक है। यदि दो या दो से अधिक राज्यों का एक ही राज्यपाल हो, तब उसे दोनों राज्यपालो का वेतन उस अनुपात में दिया जायेगा, जैसाकि राष्ट्रपति निर्धारित करे। राज्यपाल पद ग्रहण करने से पूर्व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अथवा वरिष्ठतम न्यायाधीश के सम्मुख अपने पद की शपथ लेता है।
राज्य पाल की उन्मुक्तियाँ तथा विशेषधिकार
- वह अपने पद की की शक्तियों के प्रयोग तथा कर्तव्यों के पालन के लिए किसी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं है।
- राज्य पाल की पदावधि के दौरान उसके विरुद्ध किसी भी न्यायालय में किसी प्रकार की आपराधिक कार्यवाही नहीं प्रांरभ की जा सकती है।
- जब वह पद पर हो तब उसकी गिरफ्तारी का आदेश किसी न्यायालय द्वारा जारी नहीं किया जा सकता।
- राज्य पाल का पद ग्रहण करने से पूर्व या पश्चात उसके द्वारा किये गए कार्य के संबंध में कोई सीविल कार्यवाही करने से पहले उसे दो मास पूर्व सूचना देनी पड़ती है।
राज्य पाल की शक्तियाँ तथा कार्य (Governor and state legislature)
1. कार्यपालिका संबंधी कार्य
- राज्य के समस्त कार्यपालिका कार्य राज्य पाल के नाम से किये जाते है।
- राज्य पाल मुख्यमंत्री को तथा मुख्यमंत्री की सलाह से उसकी मंत्रिपरिषद के सदस्यों को नियुक्त करता है तथा उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाता है।
- राज्य पाल के उच्च अधिकारियों, जैसे महाधिवक्ता, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति करता है।
- राज्य के उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रपति को परामर्श देता है [अनुच्छेद – 217(1)]।
- राज्य पाल है की वह राज्य के प्रशासन के संबंध में मुख्यमंत्री से सुचना प्राप्त करे।
- राष्ट्रपति शासन के समय राजयपाल केंद्र सरकार के अभिकर्ता के रूप में राज्य का प्रशासन चलाता है।
- राज्य पाल राज्य के विश्वविधालयों का कुलाधिपति होता है तथा उपकुलपतियों को भी नियुक्त करता है।
- वह राज्य विधान परिषद की कुल सदस्य संख्या का 1/6 भाग कला, समाज-सेवा, सहकारी आंदोलन आदि से रहता है [अनुच्छेद 171(5)] यह ध्यान देने योग्य है कि राज्य सभा से संबंधित त्तस्मन सूचि में सहकारी आंदोलन सम्मलित नहीं है।
2. विधायी अधिकार
- राज्यपाल विधान मंडल का अभिन्न अंग है (अनुच्छेद 164)
- राज्यपाल विधान मंडल का सत्र, उसका सत्रावसान करता है तथा उसका विघटन करता है, राज्य पाल विधान सभा के अधिवेशन अथवा दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को सम्बोधित करता है।
- राज्य विधानसभा के किसी सदस्य पर अयोग्यता का प्रश्न उत्त्पन्न होता है, तो अयोग्यता संबंधी विवाद का निर्धारण राज्य पाल चुनाव आयोग से परामर्श करके करता है
- राज्य विधान मंडल द्वारा पारित विधेयक राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद ही अधिनियम बन पता है।
- यदि विधान सभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व है, तो राज्यपाल उस समुदाय के एक व्यक्ति को विधान सभा का सदस्य मनोनीत कर सकता है (अनुच्छेद 333)
- जब विधान मंडल का स्तर नहीं चल रहा हो और राज्यपाल को ऐसा लगे की तत्काल कार्यवाही आवश्यकता है, तो वह अध्यादेश जारी कर सकता है, जिसे व्ही स्थान प्राप्त है, जो विधान मंडल द्वारा प्रति किसी अधिनियम का है। ऐसे अध्यादेश 6 सप्ताह के भीतर विधान मंडल द्वारा स्वीकृत होना आवश्यक है। यदि विधान मंडल 6 सप्ताह के भीतर उसे अपनी स्वीकृति नहीं देता है, तो उस अध्यादेश की वैधता समाप्त हो जाती है।
- राज्य पाल धन विधेयक के अतिरिक्त किसी विधेयक को पुनः विचार के लिए राज्य विधान मंडल के पास भेज सकता है; परन्तु राज्य विधानमंडल के द्वारा इसे दोबारा पारित किये जाने पर वह उस पर अपनी सहमति देने के लिए बाधित होता है। राष्ट्रपति के लिए आरक्षित विधेयक जब राष्ट्रपति के निर्देश पर राज्य पाल पुनर्विचार के लिए विधान मंडल को लौटा दे। ऐसे लौटाए जाने पर विधान मंडल 6 माह के भीतर उस विधेयक पर पुनर्विचार करेगा और यदि उसे पुनः पारित किया जाता है तो विधेयक राष्ट्रपति को पुनः प्रस्तुत किया जायेगा किन्तु इस पर भी राष्ट्रपति के लिए अनुमति देना अनिवार्य नहीं है। (अनुच्छेद 201)
- राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख सकता है। यह आरक्षित विधेयक तभी प्रभावी होगा जब राष्ट्रपति उसे अनुमति प्रदान कर दे। राज्य पाल को राष्ट्रपति के लिए विधेयक आरक्षित करना उस समय अनिवार्य है जब विधेयक उच्च न्यायालय की शक्तियों का अल्पीकरण करता है जिससे यदि विधेयक विधि बन जायेगा तो उच्च न्यायालय की संविधानिक स्थिति को खतरा होगा।
3. वित्तीय अधिकार
- राज्य पाल प्रत्येक वित्तीय वर्ष में वित्तमंत्री को विधान मंडल के सम्मुख वार्षिक वित्तीय विवरण प्रस्तुत करने के लिए कहता है।
- विधान सभा में धन विधेयक राज्य पाल की पूर्व अनुमति से ही पेश किया जाता है।
- ऐसा कोई विधेयक जो राज्य की संचित निधि से खर्च निकलने की व्यवस्था करता हो, उस समय तक विधान मंडल द्वारा पारित नहीं किया जा सकता जब पाल इसकी संस्तुति नहीं कर दे।
- राज पाल की संस्तुति के बिना अनुदान की किसी मांग को विधान मंडल के सम्मुख नहीं रखा जा सकता।
4. न्यायिक अधिकार
राज्य पाल किसी दंड को क्षमा, उसका प्रविलंबन, विराम या परिहार कर सकेगा या कसी दंडादेश निलंबन, परिहार या लघुकरण कर सकेगा। यह ऐसे व्यक्ति के संबंद में होगा जिसे ऐसी विधि के अधीन अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया गया है जिसके संबंध में राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है (अनुच्छेद 161)
5. आपात शक्ति
जब राज्यपाल को यह समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियाँ उत्त्पन्न हो गयी है जिनमें राज्य का शासन संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता तो वह राष्ट्रपति को प्रतिवेदन भेजकर (अनुच्छेद 356) यह कह सकता है कि राष्ट्रपति राज्य के शासन के सभी या कोई कृत्य स्वयं ग्रहण कर ले
राज्य पाल की स्थिति
यदि हम राज्यपाल के उपर्युक्त अधिकारों पर दृष्टिपात करें तो ऐसा लगता है कि राज्यपाल एक बहुत शक्तिशाली अधिकारी है।किन्तु वास्तविकता इससे सर्वथा भिन्न है। हमने संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया है, जिसमे मंत्रिपरीषद् विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी होती है अतः वास्तविक शक्तियाँ मंत्रिपरीषद् को प्राप्त होती है, न कि राज्य पाल को। राज्यपाल एक संवैधानिक प्रमुख के रूप में कार्य करता है किन्तु असाधारण स्थितियों में उसे इच्छानुसार कार्य करने के अवसर प्राप्त हो सकते है।
विधान परिषद् (Governor and state legislature)
- विधान परिषद् राज्य विधान मंडल का उच्च सदन होता है।
- यदि किसी राज्य की विधानसभा अपने कुल सदस्यों के पूर्ण बहुमत तथा उपस्थित मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करे तो संसद उस राज्य में विधान परिषद् स्थापित कर सकती है अथवा उसका लोप कर सकती है।
- वर्तमान में केवल सात राज्यों [UP, कर्नाटक, J&K, महाराष्ट्र, बिहार, आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना में विधान परिषद् विद्यमान है।
- विधान परिषद् के कुल सदस्यों की संख्या, उस राज्य की विधान सभा के कुल सदस्यों की संख्या की एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती है, किन्तु किसी भी अवस्था में विधान परिषद् के सदस्यों की कुल संख्या 40 से कम नहीं हो सकती है।
- विधान परिषद् का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु सीमा 30 वर्ष है। विधान परिषद् के प्रत्येक सदस्य का कार्य काल 6 वर्ष होता है, किन्तु प्रति दूसरे वर्ष एक तिहाई सदस्य अवकाश ग्रहण करते है व उनके स्थान पर नवीन सदस्य निर्वाचित होते है। यदि कोई व्यक्ति किसी सदस्य की मृत्यु या त्यागपत्र द्वारा हुई आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित होता है तो वह सदस्य शेष अवधि के लिए ही सदस्य रहता है, 6 वर्ष के लिए नहीं। विधान परिषद् के सदस्यों का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत पद्द्ति द्वारा होता है।
- विधान परिषद के कुल सदस्यों के एक तिहाई सदस्य, राज्य की स्थानीय स्वशासी संस्थाओं के एक निर्वाचन मंडल द्वारा निर्वाचित होते है एक तिहाई सदस्य राज्य की विधानसभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित होते है; 1/12 सदस्य उन स्नातकों द्वारा निर्वाचित होते है, जिन्होंने कम से कम 3 वर्ष पूर्व स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली हो; 1/12 सदस्य उन अध्यापको के द्वारा निर्वाचित होते है, जो कम से कम 3 वर्षो से माध्यमिक पाठशालाओं अथवा उनमे उच्च कक्षाओं में शिक्षण-कार्य कर रहे हो; तथा 1/6 सदस्य का राज्यपाल उन व्यक्तियों में से मनोनीत करता है, जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान, सहकारिता आंदोलन या सामाजिक सेवा के संबंध में विषय ज्ञान हो।
- विधान परिषद किसी भी बैठक कम-से-कम 10 या विधान परिषद् के कुल दशमांश इनमे से जो अधिक हो, गणपूर्ति होगा।
- विधान परिषद् अपने सदस्यों में से दो को क्रमशः सभापति एवं उपसभापति चुनती है।
- सभापति और उपसभापति मंडल द्वारा निर्धारित वेतन एवं भत्ते प्राप्त होते है।
- सभापति उपसभापति को सम्बोधित कर एवं उपसभापति सभापति को सम्बोधित कर त्याग पत्र दे सकता है, अथवा परिषद् के सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा उसे अपदस्थ भी किया जा सकता है। किन्तु ऐसे किसी प्रस्ताव को लेन के लिए 14 दिनों की पूर्व सूचना आवश्यक है।
विधानसभा (Governor and state legislature)
- विधान सभा का कार्यकाल 5 वर्ष है, किन्तु विशेष परिस्थिति में राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह इससे पूर्व भी उसको विघटित कर सकता है।
- विधानसभा के सत्रावसान का आदेश राज्यपाल के द्वारा दिए जाते है।
- विधान सभा में निर्वाचित होने के लिए न्यूनतम आयु सीमा 25 वर्ष है।
- प्रत्येक राज्य विधान सभा में कम-से-कम 60 सदस्य और अधिक-से-अधिक 500 सदस्य होते है।
- विधान सभाओं में जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जातियों और जन-जातियों के लिए स्थानों का आरक्षण किया जाता है (अनुच्छेद 332)
- विधान सभा की अध्यक्षता करने के लिए एक अध्यक्ष का चुनाव करने का अधिकार सदन को प्राप्त है, जो इसकी बैठकों का संचालन करता है।
- साधारणतया विधानसभा अध्यक्ष सदन में मतदान नहीं करता किन्तु यदि सदन में मत बराबरी में बंट जाएं तो वह निर्णायक मत देता है।
- जब कभी अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का प्रस्ताव विचार अधीन हो, उस समय वह सदन की बैठकों की अध्यक्षता नहीं करता है।
- किसी विधेयक को धन विधेयक माना जाये अथवा नहीं, इसका निर्णय विधानसभा अध्यक्ष ही करता है।
- सदन के बैठकों के लिए सदन के कुल सदस्यों के दशमांश सदस्यों की गणपूर्ति हेतु आवश्यक है।
मुख्यमंत्री (Governor and state legislature)
- मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। साधारणतः वैसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाता है जो विधानसभा में बहुमत दल का नेता होता है।
- मुख्य मंत्री ही शासन का प्रमुख प्रवक्ता है और मंत्रिपरिषदो की बैठकों की अध्यक्षता करता है।
- मंत्रीपरिषद के निर्णयों को मुख्यमंत्री ही राज्यपाल तक पहुंचाता है।
- जब कभी राज्यपाल कोई बात मंत्रिपरिषद तक पहुँचाना चाहता है, तो वह मुख्यमंत्री के द्वारा ही यह कार्य करता है।
- राज्यपाल के सारे अधिकारों का प्रयोग मुख्यमंत्री ही करता है।
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