मानव उत्सर्जन तन्त्र (excretory system) में वृक्क (Kidneys), त्वचा (Skin), यकृत (Liver) और फेफड़ा (Lungs) शामिल है इसका कार्य शरीर से अपशिष्ट पदार्थ जैसे यूरिया या यूरिक अम्ल, सीबम एवम पसीना, कार्बनडाई आक्साइड और जलवाष्प का उत्सर्जन करना होता है –
वह जैव प्रक्रम जिसमे इन हानिकारक उपापचयी वर्ज्य पदार्थो का निष्कासन होता है, उत्सर्जन कहलाता है विभिन्न जन्तु इसके लिए विविध युक्तिया अपनाते है बहुत से एककोशिक जीव इन अपशिष्टो को शरीर की सतह से जल में विसरित कर देते है तथा जटिल बहु कोशिकीय जीव इस कार्य को पूरा करने के लिए विशिष्ट अंगों का उपयोग करते है
मानव उत्सर्जन तन्त्र मे उत्सर्जी अंग निम्न है :
- वृक्क (Kidneys)
- त्वचा (Skin)
- यकृत (Liver)
- फेफड़ा (Lungs)
वृक्क (Kidneys) मानव में उत्सर्जन
मानव के उत्सर्जन तन्त्र में एक जोड़ा वृक्क, एक मूत्रवाहिनी, एक मूत्राशय तथा एक मूत्रमार्ग होता है वृक्क उदर में रीढ़ की हड्डी के दोनों और स्थित होते है वृक्क में मूत्र बनने के बाद मूत्रवाहिनी में होता हुआ मूत्राशय में आ जाता है तथा यहा तब तक एकत्रित रहता है जब तक मूत्रमार्ग से यह निकल नही जाता है
मूत्र बनने का उदेश्य रुधिर में से वर्ज्य पदार्थो को छानकर बाहर करना है फुफ्फुस में CO कार्बन डाईआक्साइड रुधिर से अलग हो जाती है जबकि नाइट्रोजनी वर्ज्य पदार्थ जेसे यूरिया या यूरिक अम्ल वृक्क में रुधिर से अलग कर लिए जाते है यह कोई आश्चर्य की बात नही कि वृक्क में आधारी निस्यंद एकक, फुफ्फुस की तरह ही, बहुत पतली भित्ति वाली रुधिर कोशिकाओ का गुच्छ होता है वृक्क में प्रत्येक कोशिका गुच्छ, एक नलिका के कप के आकार के सिरे के अंदर होता है यह नलिका छने हुए मूत्र को एकत्रित करती है
प्रत्येक वृक्क में ऐसे अनेक निस्यंद एकक होते है जिन्हें वृक्काणु (नेफ्रान) कहते है जो आपस में निकटता से पैक रहते है प्रारम्भिक निस्यंद में कुछ पदार्थ, जैसे ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, लवण और प्रचुर मात्रा में जल रह जाते है जैसे-जैसे मूत्र इस नलिका में प्रवाहित होता है इन पदार्थो का चयनित पुनरवशोषण हो जाता है जल की मात्रा पुनरवशोषण शरीर में उपलब्ध अतिरिक्त जल की मात्रा पर तथा कितना विलेय वर्ज्य उत्सर्जित करना है, पर निर्भर करता है प्रत्येक वृक्क में बनने वाला मूत्र एक लम्बी नलिका, मूत्रवाहिनी में प्रवेश करता है जो वृक्क को मूत्राशय से जोडती है मूत्राशय में मूत्र भंडारित रहता है जब तक कि फैले हुए मूत्राशय का दाब मूत्रमार्ग द्वारा उसे बाहर न कर दे
- मनुष्य एवम अन्य स्तनधारियों में मुख्य उत्सर्जी अंग एक जोड़ा वृक्क है इसका वजन 140 ग्राम होता है इसके दो भाग होते है बाहरी भाग को कोर्टेक्स और भीतरी भाग को मेडुला कहते है प्रत्येक वृक्क लगभग 1,30,00000 वृक्क नलिकाओ से मिलकर बना है, जिन्हें नेफ्रान कहते है नेफ्रान ही वृक्क की कार्यात्मक इकाई है प्रत्येक नेफ्रान में एक छोटी सी प्यालीनुमा रचना होती है, उसे बोमेन सम्पुट कहते है
- बोमेन सम्पुट में पतली रुधिर कोशिकाओ का कोशिकागुच्छ पाया जाता है, जो दो प्रकार की धमनीकाओ से बनता है
(a) चोड़ी अभिवाही धमनिया : जो रुधिर की कोशिका गुच्छ में पहुचाती है
(b) पतली अपवाही धमनिका : जिसके द्वारा रक्त कोशिका-गुच्छ से वापस ले जाया जाता है
3. ग्लोमेरुलस की कोशिकाओ से द्रव के छनकर बोमेन सम्पुट की गुहा में पहुचने की प्रक्रिया को परानिसंपदन कहते है
4. वृक्को का प्रमुख कार्य रक्त के प्लाज्मा को छानकर शुद्ध बनाना, अर्थात् इसमें से अनावश्यक और अनुपयोगी पदार्थो को जल की कुछ मात्रा के साथ मूत्र के द्वारा शरीर से बाहर निकालना है
5. वृक्को की रुधिर की आपूर्ति अन्य अंगों की तुलना में बहुत अधिक होती है
6. वृक्क में प्रति मिनट औसतन 125 मिली अर्थात् दिनभर में 180 लीटर रक्त निस्पंद होता है इसमें से 1.45 लीटर मूत्र रोजाना बनता है बाकी नि:स्पंद वापस रक्त में अवशोषित हो जाता है
7. सामान्य मूत्र में 95% जल, 2% लवण, 2.7% यूरिया एवम 0.3% यूरिक अम्ल होते है
8. मूत्र का रंग हल्का पिला उसमे उपस्थित वर्णक युरोक्रोम के कारण होता है युरोक्रोम हिमोग्लोबिन के विखण्डन से बनता है
9. मूत्र अम्लीय होता है, जिसका pH मान 6 होता है
10. वृक्क के द्वारा नाइट्रोजनी पदार्थो के अलावे पेनिसिलिन और कुछ मसालों का भी उत्सर्जन होता है
11. वृक्क में बनने वाला पथरी केल्शियम आक्ज्लेट का बना होता है
कृत्रिम वृक्क (अपोहन)
उत्तरजीविता के लिए वृक्क जैव अंग है कई कारक जैसे संक्रमण, आघात या वृक्क में सिमित रुधिर प्रवाह, वृक्क की क्रियाशीलता को कम कर देते है यह शरीर में विषैले अपशिष्ट को संचित कराता है, जिससे म्रत्यु भी हो सकती है
वृक्क के अपक्रिय होने की अवस्था में कृत्रिम का उपयोग किया जा सकता है एक कृत्रिम वृक्क नाइट्रोजनी अपशिष्ट उत्पादों को रुधिर से अपोहन द्वारा निकालने की एक युक्ति है
कृत्रिम वृक्क बहुत सी अर्धपारगम्य आस्तर वाली नलिकाओ से युक्त होती है ये नलिकाए अपोहन द्रव से भरी टंकी टंकी में लगी होती है इस द्रव का परासरण दाब रुधिर जैसा ही होता है लेकिन इसमें नाइट्रोजनी अपशिष्ट नही होते है रोगी के रुधिर को इन नलिकाओ से प्रवाहित करते है इस मार्ग में रुधिर से अपशिष्ट उत्पाद विसरण द्वारा अपोहन द्रव में आ जाते है शुद्दिकृत रुधिर वापस रोगी के शरीर में पम्पित कर दिया जाता है यह वृक्क के कार्य के समान है लेकिन एक अंतर है कि इसमें कोई पुनरवशोषण नही है प्राय एक स्वस्थ व्यस्क में प्रतिदिन 180 लीटर आरंभिक निस्यंद वृक्क में होता है यद्दपि एक दिन में उत्सर्जित मूत्र का आयतन वास्तव में एक या दो लीटर है क्योकि शेष निस्यंद वृक्क नलिकाओ में पुनरवशोषित हो जाता है
त्वचा –
त्वचा में पायी जाने वाली तैलीय ग्रन्थिय एवम स्वेद ग्रन्थिया क्रमशः सीबम एवम पसीने का स्त्रवण करती है
यकृत –
यकृत कोशिकाए आवश्यकता से अधिक अमीनो अम्ल तथा रुधिर की अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित करके उत्सर्जन में मुख्य भूमिका निभाता है
फेफड़े –
फेफड़ा दो प्रकार के गैसीय पदार्थ कार्बनडाई आक्साइड और जलवाष्प का उत्सर्जन करता है कुछ पदार्थ जैसे लहसुन, प्याज और कुछ मसाले, जिसमे वाष्पशील घटक होते है, का उत्सर्जन फेफड़ो के द्वारा ही होता है