पृथ्वी और सौर्यिक संबंध

पृथ्वी और सौर्यिक संबंध मे पृथ्वी की गति, पृथ्वी की आंतरिक सरंचना और ज्वालामुखी कितने प्रकार के होते हैं के बारे मे गहन जानकारी दी हुई है –

पृथ्वी और सौर्यिक संबंध

पृथ्वी और सौर्यिक संबंध :-

1. पृथ्वी दो प्रकार की गतियाँ करती है

  1. घूर्णन गति या दैनिक गति (Rotation) :- पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व घूमती रहती है अर्थात पृथ्वी पंखे में लगे पंखुडी की भांति गोल गोल घूमती रहती है जिसके कारण दिन और रात बनते है।
  2. परिक्रमण या वार्षिक गति (Revolution) :- पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमने के साथ साथ सूर्य के चारों ओर भी घूमती रहती है अर्थात पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा में एक घूर्णन 365 दिन 6 घंटे में करती है। जिसके कारण ऋतुएँ बनती है।
  • उपसौर (Perihelion) –
जब पृथ्वी सूर्य के सबसे नजदीक होती है उपसौर कहलाता है और ऐसी स्थिति 3 जनवरी को होती है इस दिन सूर्य और पृथ्वी के बीच की दुरी 14.7 करोड़ किलोमीटर होती है।
  • अपसौर (Aphelion) –

जब पृथ्वी सूर्य के सबसे दूर होती है अपसौर कहलाता है और ऐसी स्थिति 4 जुलाई को होती है इस दिन सूर्य और पृथ्वी के बीच की दुरी 15.21 किलोमीटर होती है।

  • एपसाइड रेखा –

उपसौरिक और अपसौरिक को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा सूर्य के केंद्र से गुजरती है इसे एपसाइड रेखा कहते है।

  • अक्षांश (Latitude)

विषुवत वृत से उत्तर या दक्षिण दिशा में स्थित किसी स्थान की कोणीय दुरी को अक्षांश कहते है। यह कोण पृथ्वी के केंद्र पर बनता है इसे विषुवत वृत से दोनों ओर अंशो में मापा जाता है। विषुवत वृत 0 अंश के अक्षांश को प्रदर्शित करता है। विषुवत वृत की उत्तरी एवं दक्षिणी दिशा में 1 डिग्री के अंतराल से खींचे जाने पर 90-90 अक्षांश होते है। यानि किसी भी स्थान का अक्षांश 90 डिग्री से अधिक नहीं हो सकता। विषुवत वृत के उत्तरी भाग को उत्तरी गोलार्द्ध और दक्षिणी भाग को दक्षिणी गोलार्द्ध कहते है है।

अक्षांश एवं देशान्तर रेखाएं
पृथ्वी
  • अक्षांश समांतर

काल्पनिक रेखा का एक ऐसा समूह जो पृथ्वी के चारों ओर पूर्व से पश्चिम दिशा में विषुवत रेखा समानांतर खिंचा  जाता है, अक्षांश रेखा कहलाती है। भूमध्य रेखा 0 डिग्री की अक्षांश रेखा है,अतः इस पर स्थित सभी स्थानों का अक्षांश 0 डिग्री होगा। भूमध्य रेखा के उत्तर में स्थित अक्षांश रेखाओ को उत्तरी अक्षांश रेखाए तथा इसके दक्षिण  स्थित अक्षांश रेखाओ को दक्षिणी अक्षांश रेखाए कहते है। दो अक्षांश रेखाओं के मद्य की दुरी 111 किलोमीटर होती है।
यदि अक्षांश समान्तरो को 1 डिग्री के अंतराल पर खींचते है, तो उत्तरी एवं दक्षिणी दोनों गोलार्द्धों में 89 अक्षांश समांतर होंगे। इस प्रकार विषुवत वृत को लेकर अक्षांश समान्तरो की कुल संख्या 179 होगी।
भूमध्य रेखा के उत्तर में 23.5 डिग्री अक्षांश को कर्क रेखा और दक्षिण में 23.5 डिग्री अक्षांश को मकर रेखा कहते है

  • देशांतर (Longitude) 
उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव मिलाने वाली काल्पनिक रेखा को देशान्तर रेखा कहते है। देशान्तर रेखाओं की लम्बाई बराबर होती है। ये रेखाएं समान्तर नहीं होती है। ये रेखाएँ उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव पर एक बिंदु पर मिल जाती है। धुर्वो से विषुवत रेखा की ओर बढ़ने पर देशान्तरों के बीच की दुरी बढ़ती जाती है तथा विषुवत रेखा पर इसके बीच की दुरी अधिकतम 111.32 किलोमीटर होती है।
  पृथ्वी और सूर्य के बीच चन्द्रमा
सूर्यग्रहण
  • सूर्यग्रहण
जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चन्द्रमा आ जाता है तब सूर्यग्रहण होता है। पूर्ण सूर्यग्रहण हमेशा अमावस्या को ही होता है।
  • चंद्रग्रहण

जब पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच सूर्य आ जाता है तब चन्द्रग्रहण होता है। ऐसा केवल पूर्णिमा को ही होता है। 

2. पृथ्वी की आंतरिक सरंचना को तीन भागों में बांटा गया है –

  1. भू-पर्पटी (Crust)
  2. आवरण (Mantle)
  3. केंद्रीय भाग (Core)

भू-पर्पटी – पृथ्वी के ऊपरी भाग को भू-पर्पटी कहते है। यह अंदर की तरफ 34 किलोमीटर तक का क्षेत्र है। यह मुख्य्तः बेसाल्ट चट्टानों का बना होता है। जिसमें मुख्यतः (SiAl ) एवं (SiMa) अर्थात सिलिकन, एलुमिना एवं मैग्नीशयम की बहुलता होती है। इसका औसत घनत्व 2.7 ग्राम/cmक्यूब है। यह पृथ्वी के कुल आयतन का। 0.5% भाग घेरे हुए है।
आवरण – यह पृथ्वी की भू-पर्पटी के नीचे 2900 किलोमीटर मोटा बेसाल्ट पत्थरों के समूह की चट्टानों से बना है।
इस हिस्से में मैग्मा चैंबर पाए जाते है। इसका औसत घनत्व 3.5 ग्राम/cmक्यूब है। यह पृथ्वी के कुल आयतन का 83% भाग घेरे हुए है।
केन्द्रीय भाग – यह भाग आवरण के नीचे निकेल एवं फेरस से बना होता है। इसका औसत घनत्व 13 ग्राम/cmक्यूब है। यह भाग सम्भवतः द्रव अथवा प्लास्टिक अवस्था में है। यह पृथ्वी के कुल आयतन का 16 % भाग घेरे हुए है।

  • ऊपरी क्रस्ट और निचली क्रस्ट के बीच के सीमा क्षेत्र को कोनराड असंबंद्धता कहते है।
  • क्रस्ट एवं मेटल के बीच के सीमा क्षेत्र को मोहविसिक डिस्कन्टिन्यूइटी कहते है।
  • ऊपरी मेटल और निचली मेटल के बीच के सीमा क्षेत्र को रेपेटी असंबंद्धता कहते है।
  • निचली मेटल और ऊपरी क्रोड के बीच के सीमा क्षेत्र को गुटेनबर्ग-विशार्ट कहते है।
  • बाह्य क्रोड और आंतरिक क्रोड के बीच के सीमा क्षेत्र को लेहमैन असंबंद्धता कहते है।

3. ज्वालामुखी :-

भू पटल पर वह प्राकृतिक छेद या दरार है, जिससे होकर पृथ्वी का पिघला पदार्थ लावा, राख, भाप तथा अन्य गैस बाहर निकलती है ज्वालामुखी कहलाता है।
बाहर हवा में उड़ा हुआ लावा शीघ्र ही ठंडा होकर छोटे टुकड़ों में बदल जाता है, जिसे सिडर कहते है।

जब ज्वालामुखी की दरारों से जल और वाष्प कुछ अधिक ऊंचाई तक निकलता है, उसे गेसर कहते है।
ज्वालामुखी क्रिया के अंतिम अवस्था को धुआँरे कहते है जिसमें गैस और जलवाष्प निकलता है।

ज्वालामुखी
ज्वालामुखी

उदगार अवधि के अनुसार ज्वालामुखी तीन प्रकार के  होते है। 

  1. सक्रिय ज्वालामुखी
  2. प्रसुप्त ज्वालामुखी
  3. शांत ज्वालामुखी
सक्रिय ज्वालामुखी – ऐसा ज्वालामुखी जिसमें अक्सर उदगार होते रहते है। वर्तमान समय में विश्व में इनकी संख्या 500 है। इनमें प्रमुख है – इटली का ऐटना, स्ट्राम्बोली। मेक्सिको में स्थित कोलिमा ज्वालामुखी बहुत ही अधिक सक्रिय ज्वालामुखी है। स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी को भूमद्य सागर का प्रकाश स्तम्भ कहते है।
प्रसुप्त ज्वालामुखी – ऐसा जवालामुखी जिसमे कभी अतीत में उदगार नहीं हुआ है। लेकिन कभी भी उदगार हो सकता है। जैसे : विसुवियस, मेयन, क्राकाटोवा और फ्युजियमा।
शांत ज्वालामुखी – ऐसा जवालामुखी जिसमें कभी भी उदगार नहीं हुआ है और न ही भविष्य में उदगार होने की संभावना है। जैसे : कोह सुल्तान एवं देवमंद, पोपा, किलीमजारो, चिम्बराजो।
  • प्रशान्त महासागर के परिमेखला को अग्नि वलय भी कहते है क्योंकि कुल सक्रिय ज्वालामुखी का अधिकांश प्रशान्त महासागर के तटीय भाग में पाया जाता है।
  • सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी अमेरिका एवं एशिया महाद्वीप के तटों पर स्थित है।
  • आस्ट्रेलिया महाद्वीप में एक भी ज्वालामुखी नहीं है।
  • विश्व का सबसे ऊँचा ज्वालामुखी पर्वत कोटपैक्सी इक्वाडोर में है।
  • विश्व का सबसे ऊंचाई पर स्थित सक्रिय ज्वालामुखी ओजस डेल सालाडो एंडीज पर्वतमाला स्थित है।
  • विश्व का सबसे ऊंचाई पर शांत ज्वालामुखी एन्काकागुआ एंडीज पर्वतमाला पर ही स्थित है।
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