चट्टान के प्रकार – आग्नेय चट्टान, अवसादी चट्टान और कायांतरित चट्टान

चट्टान के प्रकार नामक पोस्ट मे चट्टानों, पर्वत, पठार और मैदानों के प्रकार और उनसे संबन्धित अन्य महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी –

पृथ्वी की बाह्य सतह को मुख्यतः स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल और जैवमंडल नामक 4 भागों में बाँट गया है। पृथ्वी की संपूर्ण बाह्य परत, जिस पर महाद्वीप एवं महासागर स्थित है स्थलमंडल कहलाता है। पृथ्वी के कुल 29 प्रतिशत भाग पर स्थल तथा 71 प्रतिशत भाग पर जल है।

स्थलमंडल से संबंधित कुछ अन्य जानकारी :-

  1. पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध का 61 % तथा दक्षिण गोलार्द्ध का 81 % क्षेत्रफल में जल का साम्राज्य है।
  2. पृथ्वी पर अधिकतम ऊंचाई माउण्ट एवेरेस्ट ( 8850 मीटर ) की तथा अधिकतम गहराई मेरियाना गर्त ( 11022 मीटर ) की है।
  3. स्थलमंडल महाद्वीपीय क्षेत्रों में अधिक मोटी ( 40 किलोमीटर ) और महासागरीय क्षेत्रों में अपेक्षाकृत पतली ( 12 – 20 किलोमीटर ) है।
इस अध्याय में हम चट्टानों, पर्वत, पठार और मैदानों के बारे में पड़ेगे तो चलो सुरु करते है 

चट्टान के प्रकार :-

पृथ्वी की सतह के कठोर भाग को चट्टान कहते है। उत्पति के आधार पर चट्टान आग्नेय चट्टान, अवसादी चट्टान और कायांतरित चट्टान नामक तीन प्रकार की होती है।

1. आग्नेय चट्टान –

यह मैग्मा या लावा के जमने से बनती है जैसे ग्रेनाइट, बेसाल्ट, पेग्माटाइट, डयोराइट, ग्रेबो आदि।

  1. ये चट्टानें स्थूल परतरहित, कठोर सघनन एवं जीवाश्म रहित होती है।
  2. इसमें चुंबकीय लोहा, निकल, ताम्बा, सीसा, जस्ता, क्रोमाइट, मैगनीज, सोना तथा प्लेटिनम पाए जाते है।
  3. बेसाल्ट में लोहे की मात्रा सर्वाधिक होती है। इस चट्टान से काली मिट्टी का निर्माण होता है।
  4. पेग्माटाइट नामक चट्टान से अभ्र्क का निर्माण होता है  जो कि कोडरमा (झारखंड ) में पाया जाता है।
a) आग्नेय चट्टानी पिंड 
मेग्मा के ठंडा होकर ठोस रूप धारण करने से विभिन्न प्रकार के आग्नेय चट्टानी पिंड बनते है।  इनका नामकरण इनके आकार, रुप, स्थिति तथा आस पास पायी जाने वाली चट्टानो के आधार पर किया जाता है। अधिकांश चट्टानी पिंड अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों से बनते है।
b) बेथोलिथ 
यह सबसे बड़ा आग्नेय चट्टानी पिंड है, जो अन्तर्वेधी चट्टानों से बनता है। यह एक पातालीय पिंड है। यह एक बड़े गुबंद के आकार का होता है सयुंक्त राज्य अमेरिका का इदाहो बेथोलिथ 40 हजार वर्ग किलोमीटर से भी अधिक विस्तृत है।
c) स्टॉक 
छोटे आकार के बेथोलिथ को स्टॉक कहते है। इसका ऊपरी भाग गोलाकार गुंबदनुमा होता है। स्टॉक का विस्तार 100 वर्ग किलोमटेर से भी कम होता है।
d) लेकोलिथ 
जब मेग्मा ऊपर की परत को जोर से ऊपर को उठाता है और गुबंदनुमा रूप में जम जाता है तो इसे लेकोलिथ कहते है। मेग्मा के तेजी से ऊपर उठने के कारण यह गुंबदाकार ठोस पिंड छतरीनुमा दिखाई देता है। उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी भेज में लेकोलिथ के कई उदाहरण मिलते है।
e) लेपोलिथ 
यह मेग्मा जमकर तस्तरीनुमा आकार ग्रहण कर लेता है, तो उसे लेपोलिथ कहते है।  लेपोलिथ दक्षिण अमेरिका में मिलते है।
f ) फेेकोलिथ 
जब मेग्मा लहरदार आकृति में जमता है तो उसे फेेकोलिथ कहते है।
g) सिल
जब मेग्मा भू-पृष्ट के समानांतर परतो में फैलकर जमता है तो उसे सिल कहते है।  इसकी मोटाई एक मीटर से लेकर सैकड़ो मीटर तक होती है। छतीसगढ़ तथा झारखंड में सिल पाए जाते है।
h) डाइक 
जब मेग्मा किसी लंबवत दरार में जमता है तो उसे डाइक कहते है। झारखंड के सिंहभूम जिले में अनेक डाइक दिखाई देते है।

2. अवसादी चट्टान –

प्रकृति के कारको द्वारा निर्मित छोटी छोटी चट्टानें किसी स्थान पर जमा हो जाती है और बाद के काल में दबाव या रासायनिक प्रतिक्रिया या अन्य कारणों के द्वारा परत जैसी ठोस सुप में निर्मित हो जाती है।  इन्हे ही अवसादी चट्टानें कहते है। जैसे बलुआ पत्थर, चुना पत्थर, स्लेट, काग्लोमरेट, शैलखरी एवं नमक की चट्टान आदि।

  • अवसादी चट्टानें परतदार होती है। इसमें वनस्पति एवं जीव-जंतुओ का जीवाश्म पाया जाता है। इन चट्टानों में लोह अयस्क, फास्फेट, कोयला एवं सीमेंट बनाने की चट्टानें पायी जाती है।
  • खनिज तेल अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। अप्रवेश्य चट्टानों की दो परतो के बीच यदि प्रवेश्य चट्टानों की परत आ जाये तो खनिज तेल के लिए अनुकूल स्थिति पैदा हो जाती है।
  • दामोदर, महानदी तथा गोदावरी नदी बेसिनों की अवसादी चट्टानों में कोयला पाया जाता है।
  • आगरा का किला तथा दिल्ली का लाल किला बलुआ पत्थर नामक अवसादी चट्टानों से बना है।

3. कायांतरित चट्टान –

ताप, दाब एवं रासायनिक क्रियाओं के कारण आग्नेय एवं अवसादी चट्टानों से कायांतरित चट्टान का निर्माण होता है।

निर्माण के आधार पर स्थलाकृतियाँ तीन प्रकार की होती है – पर्वत, पठार और मैदान

ब्लॉक, अवशिष्ट, संचित और वलित पर्वत
पर्वत

पर्वत के प्रकार:-

पर्वत उत्पति के आधार पर ये चार प्रकार  है – ब्लॉक, अवशिष्ट, संचित और वलित पर्वत

1. ब्लॉक पर्वत –

जब चट्टानों में स्थित भ्रश या छिद्र के कारण मद्य भाग धस जाता है तथा अगल बगल के भाग ऊँचे उठे प्रतीत होते है तो उसे ब्लॉक पर्वत कहते है। बीच में धसे भाग को रिफ्ट घाटी कहते है। इन पर्वतो के शीर्ष समतल तथा किनारे तीव्र भृंश कगारों से सिमित होते है। जैसे – वास्जेस ( फ्रांस ), ब्लैक फारेस्ट ( जर्मनी ), साल्ट रेंज ( पाकिस्तान )।

2. अवशिष्ट पर्वत  –

ये पर्वत चट्टानों के अपरदन के फलस्वरुप निर्मित होते है जैसे विन्ध्याचल एवं सतपुड़ा, नीलगिरी, सतपुडा, पारसनाथ, राजमहल की पहाड़ियाँ ( भारत ), सीयरा ( स्पेन ), गैसा एवं बूटे ( अमेरिका )।

3. सचित पर्वत –

भूपटल पर मिट्टी, बालू, कंकर, पत्थर, लावा के एक स्थान पर जमा होते रहने के कारण बनने वाले पर्वत सचित पर्वत कहलाते है। जैसे – रेगिस्तान में बनने वाले बालू के स्तूप इसी श्रेणी में आते है।

4. वलित पर्वत –

ये पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों से धरातल की चट्टानों के मुड़ जाने से बनते है जैसे हिमालय, आल्पस, यूराल, रॉकीज, एण्डीज आदि। भारत का अरावली पर्वत विश्व के सबसे पुराने वलित पर्वतों में गिना जाता है, इसकी सबसे ऊँची चोटी माउंट आबू के निकट गुरुशिखर है, जिसकी समुद्रतल से ऊंचाई 1772 मीटर है। परन्तु कुछ विद्वान अरावली पर्वत को अवशिष्ट पर्वत का उदाहरण मानते है।

पठार :-

धरातल का विशिष्ट स्थल रुप, जो अपने आस पास के स्ठल से पर्याप्त ऊँचा हो तथा शीर्ष भाग चौड़ा एवं सपाट हो पठार कहलाता है। सामान्यतः पठार की ऊंचाई 300 से 500 फीट होती है सबसे अधिक ऊंचाई वाला पठार है – तिब्बत का पठार (16000 फ़ीट ), बोलीविया का पठार ( 12000 फ़ीट ), कोलंबिया का पठार ( 7800 फ़ीट )
पठार निम्न प्रकार के होते है –

  1. अन्तर्पर्वतीय पठार – पर्वतमालाओं के बीच पठार।
  2. पर्वतपदीय पठार – पर्वत्ततल एवं मैदान के बीच उठे समतल भाग को
  3. महाद्वीपीय पठार – जब पृथ्वी के भीतर जमा लेकोलिथ भू-पृष्ट के अपरदन के कारण सतह पर उभर आते है, तब ऐसे पठार बनते है जैसे – ढक्षिण का पठार।
  4. तटीय पठार – समुद्र के तटीय भाग में स्थित पठार
  5. गुंबदाकार पठार – चलन क्रिया के फलस्वरुप निर्मित पठार जैसे रामगढ गुंबद ( भारत )

मैदान :-

500 फीट से कम ऊंचाई वाले भूपृष्ठ के समतल भाग को मैदान कहते है।
नदी, हिमानी, पवन जैसी शक्तियो के अपरदन से इस प्रकार के मैदान का निर्माण होता है जो निम्न प्रकार के  होते है –

  1. लोएस मैदान – हवा द्वारा उड़ाकर लाई गयी मिटटी एवं बालू से निर्मित मैदान
  2. कार्स्ट मैदान – चूने पथर की चट्टानों के घुलने से निर्मित मैदान
  3. समप्राय मैदान – समुद्र तल के निकट स्थित मैदान जिनका निर्माण नदियों के अपरदन के कारण हुआ है
  4. ग्लेशियल मैदान – हिम के जमाव के कारण निर्मित दलदली मैदान, जहां केवल वन ही पाए जाते है।
  5. रेगिस्तानी मैदान – वर्षा के कारण बनी नदियों के बहने के कारण इनका निर्माण होता है।
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