गुरुत्वाकर्षण बल किसे कहते हैं, नियम और गुरुत्वाकर्षण बल का मान

गुरुत्वाकर्षण बल किसे कहते हैं, नियम और गुरुत्वाकर्षण बल का मान, लिफ्ट में पिंड का भार, केप्लर का नियम, उपग्रह की कक्षीय चाल व् परिक्रमण काल और पलायन वेग के बारे में पढ़ेंगे।

गुरुत्वाकर्षण बल किसे कहते हैं :-

पृथ्वी द्वारा किसी भी वस्तु को अपनी तरफ खींचने वाले बल को ही गुरुत्वाकर्षण बल कहते है। पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ही कोई भी वस्तु ऊपर से नीचे की ओर गिरती है। अगर पृथ्वी की सतह से किसी भी वस्तु को 11.2 km/ s या इससे अधिक वेग से ऊपर की ओर फेंक दिया जाए तो वह वस्तु दुबारा पृथ्वी की सतह पर नहीं आएगी।

न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम (Newton’s Law of Gravitation) –

किन्ही दो पिंडों के बीच कार्य करने वाला आकर्षण बल पिंडो के द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच के दूरी की वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
माना दो पिंड जिनके द्रव्यमान m और n है, एक दूसरे से R दूरी पर स्थित है, तो न्यूटन के नियम के अनुसार उनके बीच लगने वाला आकर्षण बल, F = G * (mn/ R^2) होता है। जहाँ G एक नियतांक है, जिसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक कहते है और जिसका मान 6.67 * 10^ -11 [N(m^ 2)] / kg^2 होता है।

गुरुत्व (Gravity) –

न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार दो पिंडों के बीच एक आकर्षण बल कार्य करता है। यदि इनमें से एक पिंड पृथ्वी हो तो इस आकर्षण बल को गुरुत्व कहते है। अर्थात् गुरुत्व वह आकर्षण बल है, जिससे पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केन्द्र की ओर खींचती है। इस बल के कारण जो त्वरण उत्पन्न होता है उसे गुरत्व जनित त्वरण (g) कहते है, जिसका मान 9.8 m/s^ 2 होता है।
गुरुत्व जनित त्वरण (g) वस्तु के रुप, आकर, द्रव्यमान आदि पर निर्भर नहीं करता है।

  • g के मान में परिवर्तन
  1. पृथ्वी की सतह से ऊपर या निचे जाने पर g का मान घटता है।
  2. पृथ्वी के ध्रुव (pole) पर g का मान महत्तम होता है।
  3. विषुवत रेखा (equator) पर g का मान न्यूनतम होता है।
  4. पृथ्वी के घूर्णन गति बढ़ने पर g का मान कम हो जाता है।
  5. पृथ्वी के घूर्णन गति घटने पर g का मान बढ़ हो जाता है।
यदि पृथ्वी अपनी वर्तमान कोणीय चाल से 17 गुनी अधिक चाल से घूमने लगे तो भूमध्य रेखा पर रखी वस्तु का भार शून्य हो जायेगा।
  • लिफ्ट में पिंड का भार (Weight of a body in lift)
  1. जब लिफ्ट ऊपर की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिंड का भार बढ़ा हुआ प्रतीत होता है।
  2. जब लिफ्ट नाचे की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिंड का भार घटा हुआ प्रतीत होता है।
  3. जब लिफ्ट एक समान वेग से ऊपर या नीचे गति करती है तो लिफ्ट में स्थित पिंड का भार में कोई परिवर्तन नहीं प्रतीत होता है।
  4. यदि नीचे उतरते समय लिफ्ट की डोरी टूट जाए तो वह मुक्त पिंड की भांति नीचे गिरती है।  ऐसी स्थिति में लिफ्ट में स्थित पिंड का भार शून्य होता है। यही भारहीनता की स्थिति है।
  5. यदि लिफ्ट के निचे उतरते समय लिफ्ट का त्वरण गुरुत्वीय त्वरण से अधिक हो तो लिफ्ट में स्थित पिंड उसकी फर्श से उठकर उसकी छत से जा लगेगा।
गुरुत्वाकर्षण बल : पृथ्वी के लिए वरदान
गुरुत्वाकर्षण बल

ग्रहों की गति से संबंधित केप्लर का नियम 

  1.  प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घवृताकार (elliptical) कक्षा में परिक्रमा करता है तथा सूर्य ग्रह कक्षा के एक फोकस बिंदु पर स्थित होता है।
  2. प्रत्येक ग्रह का क्षेत्रीय वेग (areal velocity) नियत रहता है इसका प्रभाव यह होता है कि जब ग्रह सूर्य के निकट होता है, तो उसका वेग बढ़ जाता है और जब वह दूर होता है, तो  कम हो जाता है।
  3. सूर्य के चारों ओर ग्रह एक चक्कर जितने समय में लगता है, उसे उसका  कहते है, परिक्रमण काल का वर्ग ग्रह की सूर्य से औसत दुरी के गहन के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात् T^2 अनुक्रमानुपाती r^3 अर्थात सूर्य से अधिक दूर के ग्रहों का परिक्रमण काल भी अधिक होता है।  उदारहण – सूर्य के निकटतम ग्रह बुध का परिक्रमण काल 88 दिन  है, जबकि दूरस्थ ग्रह वरुण का परिक्रमण काल 165 वर्ष है।
जैसा कि आपने सौरमंडल नामक ब्लॉग में सौरमंडल के पिंडो के बारे में पढ़ा जिसमें I.A.U. के द्वारा यम (Pluto) को ग्रहों की श्रेणी से बाहर निकाल दिया था इसीलिए अब दूरस्थ ग्रह वरुण (Neptune) है।
उपग्रह – किसी ग्रह के चारों ओर परिक्रमा करने वाले पिंड को उस ग्रह का उपग्रह कहते है। जैसे – चन्द्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है।
  • उपग्रहों की कक्षीय चाल (Orbital Speed of a Satellite)
  1. उपग्रह की कक्षीय चाल उसकी पृथ्वी तल से ऊंचाई पर निर्भर करती है। उपग्रह पृथ्वी ताल से जितना अधिक दूर होगा, उतनी ही उसकी चाल कम होगी।
  2. उपग्रह की कक्षीय चाल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती है।  एक ही त्रिज्या के कक्षा में भिन्न-भिन्न द्रव्यमानों के उपग्रहों की चाल समान होगी।
पृथ्वी ताल के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह की कक्षीय चाल लगभग 8 किलोमीटर / सेकंड होती है।
  • उपग्रह का परिक्रमण काल (Period of Revolution of a Satellite)
उपग्रह अपनी कक्षा में पृथ्वी का एक चक्कर जितने समय में लगता है, उसे उसका परिक्रमण काल कहते है।
परिक्रमण काल = कक्षा की परिधि / कक्षीय चाल
  1. उपग्रह का परिक्रमण काल भी केवल उसकी पृथ्वी तल से ऊंचाई पर निर्भर करता है और उपग्रह जितना अधिक दूर होता है उतना ही अधिक  काल होता है।
  2. उपग्रह का परिक्रमण काल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है।
पृथ्वी के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह का परिक्रमण काल 1 घंटा 24 मिनट होता है।
  • भू-स्थायी उपग्रह (Geo-Stationary Satellite)
ऐसा उपग्रह हो पृथ्वी के अक्ष के लंबवत ताल में पश्चिम से पूर्व की ओर पृथ्वी की परिक्रमा करता है तथा जिसका परिक्रमण काल पृथ्वी के परिक्रमण काल (24 घंटे) के बराबर होता है, भू-स्थायी उपग्रह कहलाता है। यह उपग्रह पृथ्वी ताल से लगभग 36000 किलोमीटर की ऊंचाई  पर रहकर पृथ्वी का परिक्रमण करता है। भू-तुल्यकालिक (Geosynchronous) कक्षा  संचार उपग्रह स्थापित करने की संभावना सबसे पहले आर्थर सी. क्लार्क ने व्यक्त की थी।
  • पलायन वेग (Escape Velocity)
पलायन वेग वह न्यूनतम वेग है जिससे किसी पिंड को पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर फेंके जाने पर वह गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर जाता है, पृथ्वी पर वापस नहीं आता। पृथ्वी के लिए पलायन वेग का मान 11.2 km/ s है। अर्थात् पृथ्वी तल से किसी वस्तु को 11.2 km/ s या इससे अधिक वेग से ऊपर किसी भी दिशा में फेंक दिया जाए तो वस्तु फिर पृथ्वी-तल पर वापस नहीं आएगा।

यदि किसी उपग्रह का कक्षीय वेग को (2^1/2) गुणा बढ़ा दिया जाये तो वह उपग्रह अपनी कक्षा को छोड़कर पलायन  जायेगा।

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