अदिश राशि और सदिश राशि के उदाहरण नामक ब्लॉग में दोनों प्रकार की राशियों (अदिश और सदिश) जिनमें दुरी, बल, चाल, वेग, संवेग, आवेग, त्वरण, गति, न्यूटन का गति-नियम, विस्थापन और उत्तोलक के प्रकार के बारे में जानेगे –
सदिश राशि के उदाहरण (Scalar Quantity) :
सदिश राशि के उदाहरण (Vector Quantity) :
वेसी भौतिक राशि, जिनमे परिणाम के साथ-साथ दिशा भी रहती है और जो योग के निश्चित नियमो के अनुसार जोड़ी जाती है उन्हें सदिश राशि कहते है। जैसे – वेग, विस्थापन, बल, त्वरण आदि।
आइए जानते है कौन सी राशि सदिश है और कौन सी अदिश
- दुरी (Distance) – किसी दिए गए समयांतराल में वस्तु द्वारा किये गए मार्ग की लम्बाई को दुरी कहते है। यह एक अदिश राशि है। यह सदैव धनात्मक होती है।
- विस्थापन (Displacement) – एक निश्चित दिशा में दो बिंदुओं के बिच की लंबवत दुरी को विस्थापन कहते है। यह सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मीटर है। विस्थापन धनात्मक, … , और शून्य कुछ भी हो सकता है।
- चाल (Speed) – किसी वस्तु द्वारा प्रति सेकंड तय की गयी दुरी को चाल कहते है। चाल एक अदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मीटर पर सेकंड है।
- वेग (Velocity) – किसी वस्तु के विस्तापन की दर को या एक निश्चित दिशा में प्रति सेकंड वस्तु द्वारा तय की गयी दुरी को वेग कहते है। यह एक सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मीटर पर सेकंड है।
- त्वरण (Acceleration) – किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन की दर को त्वरण कहते है। यह एक सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मीटर पर सेकंड स्क्वायर है।
- वृत्तीय गति (Circular Motion) – जब कोई वस्तु किसी वृताकार मार्ग पर गति करती है, तो उसकी गति को व्रतीय गति कहते है। वृत्तीय गति एक त्वरित गति होती है, क्योंकि वेग की दिशा प्रत्येक बिंदु पर बदल जाती है।
- कोणीय वेग (Angular Velocity) – वृताकार मार्ग पर गतिशील कण को वृत के केंद्र से मिलाने वाली रेखा एक सेकंड में जितने कोण से घूम जाती है, उसे उस कण का कोणीय वेग कहते है। इसे प्राय ओमेगा से प्रकट किया जाता है।
- बल (Force) – यह एक बाह्य कारक है जो किसी वस्तु की प्रारंभिक अवस्था में परिवर्तन करता है या परिवर्तन करने की कोशिश करता है। बल एक सदिश राशि है, इसका S.I. मात्रक न्यूटन है।
- संवेग (Momentum) – किसी वस्तु के द्रव्यमान तथा वेग के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते है। यह एक सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक किलोग्राम * मी./सै. है।
- आवेग (Impulse) – जब कोई बड़ा बल किसी वस्तु पर थोड़े समय के लिए कार्य करता है, तो बल तथा समय अंतराल के गुणनफल को उस बल का आवेग कहते है। यह एक सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक न्यूटन सेकंड है।
- अभिकेंद्रीय बल (Centripetal Force) – जब कोई वस्तु किसी वृताकार मार्ग पर चलती है, तो उस पर एक बल वृत के केंद्र की ओर कार्य करता है इस बल को ही अभिकेंद्रीय बल कहते है। इस बल के अभाव में वस्तु वृताकार मार्ग में नहीं चल सकती। ‘मौत के कुँए’ में कुँए की दीवार मोटर-साइकिल पर अंदर की ओर क्रिया बल लगाती है। जो कि अभिकेंद्रीय बल का उदाहरण है।
- अपकेंद्रीय बल (Centrifugal Force) – यह एक ऐसा बल है जिसकी कल्पना करनी होती है जिन्हे परिवेश में किसी पिंड से संबंधित नहीं किया जा सकता। इसकी दिशा अभिकेंद्री बल के विपरीत दिशा में होती है। कपड़ा सूखने की मशीन, दूध से मक्खन निकालने की मशीन आदि अपकेंद्रीय बल के सिद्धांत पर कार्य करती है।
- बल-आघूर्ण (Moment of Force) – बल द्वारा एक पिंड को एक अक्ष के परितः घूमने की प्रवृति को बल-आघूर्ण कहते है। किसी अक्ष के परितः एक बल का बल-आघूर्ण उस बल के परिमाण तथा अक्ष से बल की क्रिया रेखा के बिच की लंबवत दुरी के गुणनफल के बराबर होता है। यह एक सदिश राशि है। इसका मात्रक न्यूटन मी. होता है।
न्यूटन का गति नियम :
भौतिकी के पिता न्यूटन ने सन 1687 ईस्वी में अपनी पुस्तक ‘प्रिसिपीया’ में सबसे पहले गति के नियम को प्रतिपादित किया था।
Newton’s third Rule |
न्यूटन का प्रथम गति-नियम –
यदि कोई वस्तु विराम अवस्था में है, तो वह विराम अवस्था में रहेगी या यदि वह असमान चाल से सीधी रेखा में चल रही है, तो वैसी ही चलती रहेगी, जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल लगाकर उसकी वर्तमान अवस्था में परिवर्तन न किया जाए।
प्रथम नियम को गैलीलियो का नियम या जड़त्व का नियम भी कहा जाता है।
न्यूटन का द्वितीय गति-नियम –
किसी वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस वस्तु पर आरोपित बल के समानुपाती होता है तथा संवेग परिवर्तन बल की दिशा में होता है। i.e F = mA जहां F बल और A त्वरण है।
न्यूटन का तृतीय गति-नियम –
प्रत्येक क्रिया के बराबर, परन्तु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।
उदाहरण –
- वाहनों के शॉकर, दीवार पर फेंकी हुई बॉल
- बंदूक से गोली चलने पर लगने वाला धक्का,
- नाव से किनारे पर कूदने पर नाव का पीछे हट जाना,
- रॉकेट के उड़ने में।
सरल मशीन (Simple Machine) :
यह बल-आघूर्ण के सिद्धांत पर कार्य करती है। सरल मशीन एक ऐसी युक्ति है जिसमें किसी सुविधाजनक बिंदु पर बल लगाकर, किसी अन्य बिंदु पर रखे हुए भर को उठाया जाता है जेसे – उत्तोलक, घिरनी, आनत ताल, स्क्रू जैक आदि।
उत्तोलक |
उत्तोलक (Lever) :
यह एक सीधी या टेढ़ी दृढ़ छड़ होती है, जो किसी निश्चित बिंदु के चारो ओर स्वतंत्रतापूर्वक घूम सकती है। उत्तोलक में तीन बिंदु होते है –
- आलम्ब (Fulcrum)- जिस निश्चित बिंदु के चारो और उत्तोलक की छड़ स्वतंत्रतापूर्वक घूम सकती है, उसे आलम्ब कहते है।
- आयास (Effort) – उत्तोलक को उपयोग में लेन के लिए उस पर जो बल लगाया जाता है, उसे आयास कहते है।
- भार (Load) – उत्तोलक के द्वारा जो बोझ उठाया जाता है, उसे भार कहते है।
उत्तोलक के प्रकार
- प्रथम श्रेणी का उत्तोलक – कैंची, पिलाश, सिंडासी, कील उखाड़ने की मशीन, शीश झूला, साइकिल का ब्रेक, हैंड पंप आदि।
- द्वितीय श्रेणी का उत्तोलक – सरौता, नींबू निचोड़ने की मशीन, एक पहिये की कूड़ा ढ़ोने की गाड़ी आदि।
- तृतीय श्रेणी का उत्तोलक – चिमटा, मनुष्य का हाथ आदि।